आराजि बोजि | Araji Boji

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Araji Boji by आचार्य रघुवीर - Aacharya Raghuveer

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कंजूर और तंजूर भी आज कही पूरे उपलब्ध नही । भारतवर्ष वी दृष्टि से मोगोल जातियो, उनके देश, भाषा और साहित्य वा इतिहास बहुत प्राचीन मही | विक्रम संवत्‌ १२६३ में छिदंगिस्‌ ख़ाबु वा अभियेव हुआ । उन्होंने छोटी छोटी तुर्वी और मोगोल जातियो वो, जो सदा से आपस में छड़तो भिडती आई थी, अपने थाहुबल और संगठन से एवं छत्र के नीचें खडा किया | मोगोल विश्व वी महती विजयिनी शक्ति वन गए । छिंडगिसू तथा उसके उत्तराधियारी पुत्र ओगेदेइ ने एशिया और यूरोप के अधिवाश भागो यो पददलित विया। यूरोप काप उठा । मोगोछ योद्धा और उनके घोडे अदम्य थे। किन्तु १२६८ विक्रम सबत्‌ में जब ओगेदेइ वा देहान्त हुआ, मोगोल सेनाएं यूरोप से छोटी । मोगोल सामन्तो म॑ सम्राद बनने वी स्पर्धा, साम्राज्य प्रतिप्ठापन और सघारण की अपेक्षा वही अधिक बछवती थी। कुछ वर्ष पीछे खुबिलाइ साथ्‌ ने चीन मे प्रथम मोगोल वश वी स्थापना वी (विक्रम सवत्‌ १३१७)। खुबिलाइ खान वौद्ध थे। इनसे पूर्व ही मोगोल जातियो में बौद्ध घर्मे का प्रवेश हो चुका था । विस्तु पूर्णरूप से बद्धमूल होने के लिए वौद्ध धर्म वो विक्रम स० १६३४ तक प्रयास करना पडा । तत्परचात्‌ धर्म वी गति शीघ्रता से हुई। धर्मभवत, साहित्यप्रिय सम्राद्‌ लेग्दानु खान (१६६१-१६६९१ विक्रम सबत्‌) ने मोगोल वज्जूर ये निर्माण था वार्ये प्रारम्भ कराया। लगभग एक शताब्दी के परचात्‌ अर्थात्‌ सवत्त्‌ १७७७ मे सम्पूर्ण कज्जूर वा पेकिंग में प्रकाशन हुआ । २० वर्ष व्यतीत होने पर तजूर वा कार्य आरम्भ हुआ और ८, € वर्ष मे ही सम्पूर्ण तञ्जूर का सवत्‌ १८०६ में पेकिंग से प्रकाशन हुआ । वज्जूर वी भाषा साहित्यिक मोगोल वा आधार है ; वही भाषा थोडे बहुत परिवर्तनों के साथ आज तब चली आ रही है 1 कज्जूर से पूर्व भोगोल साहित्य नगष्य है। मोगोल का सर्वप्रथम ग्रन्य “मोगोलुन्‌ निगुछ्धा योब्छा- गान” अर्थात्‌ भोगोलों का नियूढ ऐतिह्ाय है। यह १३वीं शतासदी से रचा गया। यह वास्तव में बौद्ध धर्म का इतिहास है । मोगोल साहित्य का सुवर्णयुग १७, १८ और १६ वी शताब्दिया हैं । भागोल जातियो द्वारा बौद्ध धर्म तथा साहित्य मज्जु (31०॥०४००) से वोल्गा नदी तक पहुचा। मोगोलो ने शिविर (59106719) मे भी पतावाएं लहराई ॥ श्र श् शा हमारा प्रयास है कि भारतीय विद्यार्थी मोगोल भाषा मे प्रवेश करने मे न्यूनातिन्यून कठिनाई का सामना वरें। इस दृष्टि से हमने अपने ओर अपने शिष्यो के अनुभव से यह आवश्यक समझा कि मोगोछ लिपि वा परिचय तो पहिले पाठ से करा देवें किन्तु उसका भार नव शिशिक्षु पर न डालें | अत. व्यावरण में आदि से अन्त तक मोंगोल शब्द नागरी लिपि मे ही दिए गए है । मोगोल प्याक्रण मे सस्द्ृत, हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओ के साथ इतनी समानताए हैं कि (२५)




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