प्रेमधारा | Premadhara

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Premadhara by रघुवरदत्तात्मज आर्य्यदत्त - Raghuvardattatmaj Aaryyadatt

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रघुवरदत्तात्मज आर्य्यदत्त - Raghuvardattatmaj Aaryyadatt

Add Infomation AboutRaghuvardattatmaj Aaryyadatt

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
द्वितीय प्रवाह । श्प च्य्य्य््य्य्य्स्स्स्ल्ल्ल्््ल्ल्त्ल्रः अ्स्‍ ्-्््नचनलजुचहज>++-.-न.त0....ह.हह0त0ुह8ह0__ है ३०. न शकनक + ५, 13 फनी ऋ०/ कक #३६/ «७ ६०८. टकक ? कक “७ “७, 8... च७७३क२३-मी आफ कमा ७ 1 आर. आन बज चर के कक 3जल +> आक 5 डर जा ( १३ नप बन्चु भा होते हुए रावण विभाषण ने तजा, अन्याय तज कातेय | उसने न्‍्याय-पथ को था भजा । तात्पय यह-जो देश में अन्याय हो करता कहीं वह भूप हो अपना नहीं वह वन्धु भी अपना नहीं ॥ अनन्तर बढा.। क्‍यों कि सरी सभा में अन्याय पूर्वक द्रौपदी का अपमान किये जाने के कारण क्रोधित हुये पांड़वों के भय से उसको पांडवों के विनाशाथ बढ़े पड़ यन्त्र रचने पड़े, जिन का फल यह हुवा कि उसे पांडवों की गेषारिन सें समृलू भस्म होना पड़ा | प्रिय पाठकों ! ऐसी राज़ भक्ति भी किस काम की हुई जिससे अपने राजा के यह छोक ओर परलोक दोनों नष्ट हो जाये । मित्रों चाहे अपना स्वामी अपने को मारे हो क्यों न डाले पर सेवक को उचित है कि प्रत्येक वात में स्वामी की हाँ में हो न मेला कर उस को बुरे मागे से रोकने का प्रत्यक्ष किया करे | जैसा कि महा कवि भारवे ने कहा है --- अमान “मम भम काम बिकक, सकि सखा साधु न शास्तियोष्धिपम । द्वितान्तयः संश्टणुते स किप्रभु सदा चुकूलेषु हि कुषचते रति-- नपेष्वमात्येषु च सर्वेसम्पद्‌: ॥ अथीत, वह मंत्री कुसंत्री हैं जो अपने स्वामी को ( भय अथवा प्रयोजन वश) हित की बातें नहीं कहता | और वह राजा भी दृष्ट राजा है | जो अपने स्वामिभक्ते सेवक का कैंथन ( कड़वा होंने पर भी ) प्रेस पूर्वक नहा सुनता । जहां राजा और मन्‍्त्री परस्पर निष्कपट भाव से मिल कर काम फरते है, वहाँ सब प्रकार की सम्पदायें वास-किया करती हैं | यहीं




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now