आत्मजयी | Aatmajayi

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Aatmajayi by कुँवर नारायण - Kunvar Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वाज़श्रवा का क्रोध मृत्यवे त्वा ददामि तेयारियाँ जिनसे घेर कर तुम अपने को कृताथ समझ रहे ये विधान और प्रणालिया - जिनके पार तुम मुझे तुड़े मुडे-से दीखते देसो मुझे भी 1-- तुम जिन वस्तुओं को प्रिय या अप्रिय कहते यदि केवल उनम हूँ, तो मुझे भी त्याग कर मुझसे श्रेप्तर कुछ मागो | लेकिन यदि तुम्हारे अनुसरण से भिर् भो भेरी कोई सत्ता हे तो उसे आक्रान्त मत करो । अवसर दो कि वह पनप सके प्रसन खुली धूप और ताजी ह॒वा में उसे भपनी शबित से नष्ट मत करो, उससे शवित ग्रहण करो, बयोकि तुम्हे आत्मजया १३




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