फुटपाथ | Futpath

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Futpath by डॉ. राधाकृष्णन - Dr. Radhakrishn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फुटपा श्र श्र कैसा रुपया ?--मनोज ने अनजान बनकर प्रश्न किया । उन दोनों ने क्रोध अबज्ञा और भत्संना के साथ जो बात कटी उसका मतलब था कि हमलों गों के चचा ने तुम से गठिया श्र ताकत की दवाइयाँ खरीदी थीं लेकिन उससे कोई लाभ नहीं हुआ । इसके अलावा गाँव भर में जितने लोगों ने दवाइयाँ खरीदों उनमें से किसी को भी लाभ नजर नहीं आ्राया अतरव अगर मला चाहते द्ोतोसीवे से वे पैसे निकालकर वापस कर दो नहीं तो ठीक न दोगा। मनोज ने रुखाई में कद्दा--क्यों ठीक न द्ोगा १ इस पर वे बेतरह कड़े पड़े । शोर सुनकर घम शाला के दुसरे-दूसरे लोग भी रा पहुँचे । काना कूवी होने लगी। मनोज की बातों और उसकी दवा किसी पर भी धमंशाक्ता में रदनेवाले यात्रियों का विश्वास नहीं था । थोड़ी-सी रगड़-कगड़ के वाद यही फेसला इुदछा कि मनोज उनलोगों के साथ गाँव में जाकर उनके चचा की हालत देखे | अगर वह सचमुच श्रच्छा न हुआ हो. तो मनोज का फज हे कि बह गरीब किसान से लिया हुआ पैसा वापस कर दे | मनोज इस फेसले पर झनिच्छा पूवक राजी हो गया । हो कया गया उसे ऐसा करना पड़ा । मल्नाया हुआ व अपने बक्स को लेकर बड़बड़ाता हुआ उन अक्खड़ किसान युवकों के साथ निकला । मनोज जो कुछ बड़-बड़ा रहा था उसका आशय था कि लोग दवाइयाँ तो खरीद लेते हैं श्रौर समक जाते हैं कि केवल दवा फाँकने से ही रोग अच्छा हो जायगा शझ्सल चीज तो है. परदेज श्र अनुपान । परहेज श्र झनुपान के बिना तो दकीस जुकमान की




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