गीत - काव्य में राष्ट्रीय भावना | Geet - Kavya Men Rashtriy Bhavana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राष्ट्रीय भावना दर
“«क्षापुनिक अर्णों प॑ रएप्ट्रयता वी सावन्प का विवस्स अग्ेजों के भारत आगमन
और उनके द्वारा देश का वद्रीय सत्ता के शन शन पूछात अधिदत क्यि
जने के पश्चात् प्रारम्भ होता है 1 अप्रेजी शिला थे प्रचार प्रछतार
तथा देश के विभिन्न माया के निवाप्तियों के पारस्परिक सम्मेलन ने राष्ट्र
सम्बधी एव व्यापक हष्टिकोण को जम दिया फत राष्द्रियता की भावना
बो भी नये आयाम मिव। . विदेशी शाप से विक्षुब्य जनता की
परतञता की श्रनुभृति भी साप्ट्रियता दी मावता ये विकासशील होते ही
उस अधिर भास देन सभी 1” ६० बत दश की परिस्थितियों पर राष््रियता
वी भावना का विकास निभर करता है।
आ जाति और घम
श्री बन्हैयातान माणिक्लाल मुशो ने अपने से मारतीय राष्द्रियता
व स्वरूप सौर उसी पिजपताएं में जिया है कि पाएचात्य देशा की तरह
दशभतति पंदज राजनीनिक प्ररणामात्न न होवर भारतीय मस्तिष्या मे यह
भावना गहरी घामिक भ्रश्णा है 1३१ एक ही दश मे अनेक धम होते हैं ।
थआावश्यव नही कि एवं राष्ट्र म एवं ही घम्र वे समयव हों। विभिन्न घ्रॉमिक
सम्प्रदाया चा यटि अपने हा घम वी उन्नति बरत हुए आय धम के मानते
बजा था उपहासत बरते हैं जौर उनकी उन्नति म दाघा पहुँचाते हैं ता निश्चय
दही एवं घामिद सम्पटाय दूसरे पम्रवाले सम्प्रदाय से देय भावना रखेगा।
यही हे थे भावना राष्ट्र वी उन्नति म बापर सिद्ध होती है। जसा वि हम
इतिहास पी आर दृष्टि डालने पर देसते हैं वि भक्ति-आंदोलन इंही पामिव-
सम्प्रदापों वी द्वेप भावना यो प्रतिक्रिया स्वमप हुआ था । यदि घामिक-नसम्पा
दाया मे मतभेद थे होता तो एड़ठा दे' दिए मक्ति-आधदोलन हो! बयों हुप्ना
होता है
इसी प्रवार जाति गो सबर भी राष्ट्रीय भावना को विवास हुआ)
प्रचात झुमार जायमवाल ने अपने छत “माषनात्मर एकटा एछुद सुमाब' से
जो मुमाव प्रस्तुत दिये हैं उनम राष्ट्रीय भावना व प्रत्तयत एवं अय सवीन
तत्द वर होता आदश्यर बतलाया है बह ठत््य है भावनात्मक एला वा
प्रयशा । उन्होंने बतसाया हैं कि. जातीय और धामिक' क्षाघारों पर निश्चित
सस्प्रटाय) को पनपने ही न दिपा जाय । हारे देश में जातीय विभाजर है,
जितनी नरमी न रन नननानननीन न ज++++ ५
३७ मयए हिली बास्य, डॉ लिववुमार पिण पूछ ड़ ४
३१ साप्ताहिक ट्ल्दुस्तान १८ अगस्त १६६३ यू मर ;
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