नियमसार | Niyamasar

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Niyamasar by श्री कुन्दकुन्दाचार्य - Shri Kundakundachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रा त्ना यह अनुवाद करने का महान सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ, वह मेरे लिए अत्यन्त हषे का कारण है | परम पूज्य सद्गुरुदेव के आश्रय में इस गहन शास्त्र का अनुवाद हुआना है। परमोपकारी सद्गुरुदेव के पवित्र जीवन के प्रत्यक्ष परिचय बिना तथा उनके आध्यात्मिक उपदेश विना इस पामर को जिनवाणी के प्रति लेशमात्र भक्ति या श्रद्धा कहाँ से प्रगट होती, भगवान कुन्दकुन्दाचा्यदेव और उनके शास्त्रों की लेश भी महिमा कहाँ से आ्राती तथा शास्त्रों का श्र्थ खोलने की लेश भी शक्ति कहाँ से प्राप्त होती ? | । इसप्रकार अनुवाद की समस्त शक्ति का मूल श्री सद्युरुदेव ही होने से वास्तव में तो सद्गुरुदेव की अमृतवाणी का स्रोत ही - उनके द्वारा प्राप्त हुआ अमूल्य उपदेश ही - यथाकाल इंस अनुवाद के रूप में परिणुमित हुआ है । जिनके द्वारा सिचित शक्ति से तथा जिनकी ऊष्मा से मैंने इस गहनशास्त्र को अनूदित करने का साहस किया था और जिनकी कृपा से वह निविध्च समाप्त हुआ है, उन पूज्य परमोपकारी सद्गुरुदेव (श्री कानजी स्वामी) के चरणारविन्द में अत्यन्त भक्तिभाव से मैं वंदन करता हूँ ।” गुजराती भाषा के इस अनुवाद के आघार पर श्री मगनलालजी जेन ललितपुरवालों ने इस श्रन्थ का हिन्दी भाषा में अनुवाद किया है। उन्होंने सोनगढ़ से प्रकाशित अ्रनेक ग्रन्थों का हिन्दी: अनुवाद किया है । सुपरिचित विद्वान एवं कवि वादू श्री जुगलकिशोरजी 'युगल' कोटा ने बहुत लगन के साथ इस ग्रन्थ की मूल गाथाओं का हिन्दी भाषा में पद्मयानुवाद किया है। जिस पद्मानुवाद का प्रस्तुत श्रकाशन में उपयोग हुआ है । हे इस ग्रन्थ का प्रकाशन श्री दिगम्बर जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट सोनगढ़ से प्रकाशित चतुथववृत्ति . के संस्करण के आ्राधार पर श्रॉफसेट पद्धति से हुआ है, अतः ग्रन्थ मूलतः ज्यों का त्यों ही है । प्रकाशन समिति एवं ट्रस्ट के अनुरोध पर सुप्रसिद्ध चिन्तक एवं अनेक मौलिक कृतियों के प्रणेता डॉ० हुकमचन्दजी भारिलल ने एक शोध-खोज पूर्ण प्रस्तावता लिखने की कृपा की है, जिसमें आचार्य कुन्दकुन्द एवं प्रस्तुत ग्रन्थ नियमसार का प्रामारि।क परिचय बोधगम्य भाषा में प्रस्तुत किया है। हमें विश्वास है कि इससे विद्वानों के साथ-साथ ञआात्मार्थी मुमुक्षु भाइयों (को भी लाभ प्राप्त होगा । ह उक्त सभी महानुभावों के हम वहुत-बहुत आभारी हैं । | साथ ही श्री वावृभाई चुन्नीलाल मेहता एवं श्री नेमीचन्दजी-पाटनी के भी हम हृदय. से आ्रभारी हैं, जिन्होंने समय-समय पर हमें मार्गदर्शन दिया है । |] इनके अलावा मुद्रण व्यवस्था में श्री सुरेन्द्रकुमारजी अग्रवाल, दिल्‍ली एवं श्री सोहनलालजी जन, जयपुर प्रिण्टर्स आदि महानुआवों हारा दिये गये सहयोग को भी हम भुला नहीं सकते-1 . यद्यपि प्रस्तुत प्रकाशन का लागत मूल्य १८) रुपये आया है, तथापि दानदाताओं की मदद एव स्वयं ट्रस्ट की ओर से २५% कीमत कम करने पर इस ग्रन्थ का विक्रय मूल्य मात्र १०) रुपये , रखा गया है; अतः सभी दानदाताओ्रों का भी हम हृदय से आभार मानते हैं । कीमत कम करनेवाले दानदाताओं की नामावली पृष्ठ आठ पर दी गई है । ० हब ५; + 8 7 कु ( ड ) 5 ५ हू, ४ ३३५ 5 €




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