समर्पित | Samrpit

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Samrpit by कृष्णकान्त त्रिपाठी - Krishnkant Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऊंट 8028 अवभूति उस समय जब उनका नाटक निम्ित हुमा उत्तरापय मे ये । यशोवर्मा के राज्य मे स्हकर वे उज्जेन माटक खेलने मही जा सफते हैं। सालती भाधषव को प्राचीनत्म हस्तलिखित श्रति नेदारी सदत्त्‌ २७६८८ ११४६ की हे!, जिसप “विदर्भपु” यह शब्द है ही नही । म्वलती- सापव के दृश्य पद्रावती नमरो से प्रारभ होते हैं। इस नगरी करे स्थिति भौर देशकालीन रूपरेखा बडो विश्वेषता से चोथे अंक के अन्त और नव अक के प्रारम्भ म॑ पूर्ण विस्तार क साथ वख्ित है । प्री एम, वि लले ने पद्मावती की एकता परवाया वामक गाव से, जो नस्वर व उत्तर पूर्व ग्वालियर प्रदेश के मध्य भे हूँ, मानी है । लेले मे पददुमावती और भवभूति के पद्मपुर को एक ही माना है )३ कालीभजियनाथ के बारे से बिवेचन करते हुए उन्होने (लिखा है कि 'दक्षिणापये' शब्द यह पघथें सूचित करता है कि-जहा नादक खेला गया बहा से पदूमपुर दक्षिण को ह्लोर था । कालपो कन्नोज राज्य को सीमा के भीतर है भौर पवाया वहा से दक्षिण की झौर है, जहा कवि का घर झोर परिवार था। लैले की घारणापो वी पुष्टि प्रसिद् पुरातत्व वैत्ता कनिधम भी करते हैं ।॥ कालपी और बलाप्रिय का नाभ स्ताम्य धन्देह की जगह नहीं छोडता। परदमावतों के बरंतो की पूरी उपयुक्तता पवदाया ओर नरवर से बैठ जाती है । ड1० बेलवलकर कार कथन है कि मालती-माधव से पदुमावतो के वर्णन में भवभूति कहते हैं कि ये पर्वत मुझे दक्षिण के पवेतो भौण गोदावरों की स्मृति ऋन्य-” देते हैं। भ्रतः भवभूति दक्षिण प्रदेश से पूर्द परिचित थे और पदुमावतों से बाद में उनका सपर्क हृम्मा । किन्हु हमारा कथन है कि भवभूति ने मालत्तोमाघव से पहिले उत्तर रामचरित की रचना को थो, जिसे हम आगे के प्ध्याय ऐ सिद्ध करेगे, भौर यहा 3. नेपाल दरबार लाइय्रे रे मैन्या। कष्ट न० श४७छ३ 3->'मालतीमाधव' सार और विचार पू० ५ 3--प्राक्योलाजिकल रिपोर्ट १६६२-६४, पुस्तक २, पृ० ३०७-८ है




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