तिब्बत में तीन वर्ष | Tibbat Men Teen Varsh

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Tibbat Men  Teen Varsh by श्री इकाई कावागुची - Shri Ikai Kavaguchi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विदाईकी चयी सेंट ध् मुझे भी चछते समयतक छोगोंने समम्धाया बुम्याया और इस यात्राकों छोड देनेफा उपदेश दिया। डउद्घाहरणऊे हिपि अन्तिम रातिकों में ओसाकामें मि० मकीके घर ठदवरा हुआ था। यही चाकांबाया नगरके एक जज मेरे पास जाये और बोले-- इस काममें आपको सफलता नहीं मिछेगी ) जिद्म आकर आप प्राण गयाइईर्रेगा और छोंग आपकी हसी उडावेंगे । इससे बाज्ञ आइये और धर्मोपरेशका काम कीजिये , फ्योकि इसमें आपने पूर्ण योग्यता प्राप्त की है और ज्ञापानके धौद्ध भन्दिरोंमे भाजकठ यी य_शिक्षक्रींकी बहुत ही आवश्यकता है। पुम्हे हु देसफर उन्होंने कदा यदि इस यात्रार्म » आपकी हत्यु हुई तो आप कुछ न कर सर्कंगे।' मैंने फह्टा “प्रथम तो यद सन्विग्ध है सौर यदि मेरी झृत्यु छो भी गई तो घुझे झन्‍्तोप होगा कि छडाईके घैदानमें चद्धादुर सिपादीऊफी भाति सैंने धर्में निमित्त प्राण' गयाये है ” मुझे अधिक एकर अर खाइव मेरी शुभ काप्तना करते अपने घर चले गये | दूसरे दिव ता० २५ जून स० १८६७ को मैं अपने रष्टमियोंसि विदा होकर इडजूमी मारू जद्ाज द्वार ओखसाकासे रवाना छुआ | इडआूमी पश्चिम धोता सीधे दाकायकी सीर चछा। दागकाएमे मि० टामलत नामझे एक अप्रेय इसी जदाजपर सघार हुए। डयके सहवाससे इमछोगोंफो चडा आनन्द छुआ क्योंकि इमली की निएवेएला जाती रही । आप एापानमे घाय भद्ाग्द यर्षतक रह चुके थे भौर जापानी भाषा रपछ दोए्ते थे । 71 घ1ह ५




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