अर्थमानव | Arth Manav

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Arth Manav by मक्सिक गोर्की - Maksik Gorki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मो कभी सत छाड़ना | भ्र्तामानाव से उसन कठारता से कहा-- याद रखना । परमामा क सामते मरी कस्या के जुम्मेटार' तुम रहागे ! प्रतामानोव भूमि का हाया स छूते हुए मुका-- समभता हूँ । प्रपती मावी परृत्र-बधु से किसी प्रकार के वयापूर्ण धम्द बहू विना उसने उसकी प्रौर प्रपन पुत्र की ध्रोर निहारा, प्रौर फिर ववयि की भार हथारा किया | “बस जाप्रा ! जय दोनों वाग्दरा कमर से बाहुर चस गए तो यह विस्तर: के किनार॑ पर थेठ गया और हदतापूर्वक वासा-- 'घान्‍्त रहो | सम ठीक होग। वेरा ही होगा जसा होना चाहिए ! मैने प्पने राजकुमार की सेंतीस यर्ष सेबा की है-भौर कमी वाषा नहीं ध्राई । मनुष्य परमात्मा नहीं मनुप्प दयाशु मी नहीं उस प्रसन्न रखना बड़ा कठिन है! झोर समशिन उस्याना प्रापको इस यार में कमी ध्रफ़्मोस न हांगा । छुम मर सड़को गी माँ हाकर रहांगी ध्रौर उस्हें इस वात की प्राज्ा होगी कि ब सदा तुम्दारा झादर करें। वाइमाकोव यह पद बुछ्ध सुमता रहा भोर कुपबाप कान में इकाना की प्लोर निहारता हुप्ता प्रॉसू ढसकाता रहा । उस्याना भो सिसकती रही झौर यह पुरुष प्रपनी दु खह वानें करता रहा-- “एट्ट ! यब्मेई मित्रिच | प्राप बहुत जल्दी जा रहे हैं। प्रौर, यह सव, जब मुझे प्रापक्ी यहुत जरुरत है । यह तो मरे गन पर छुरी चल्तान क समान है । ड




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