अर्थमानव | Arth Manav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
475
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मो कभी सत छाड़ना |
भ्र्तामानाव से उसन कठारता से कहा--
याद रखना । परमामा क सामते मरी कस्या के जुम्मेटार'
तुम रहागे !
प्रतामानोव भूमि का हाया स छूते हुए मुका--
समभता हूँ ।
प्रपती मावी परृत्र-बधु से किसी प्रकार के वयापूर्ण धम्द
बहू विना उसने उसकी प्रौर प्रपन पुत्र की ध्रोर निहारा, प्रौर
फिर ववयि की भार हथारा किया |
“बस जाप्रा !
जय दोनों वाग्दरा कमर से बाहुर चस गए तो यह विस्तर:
के किनार॑ पर थेठ गया और हदतापूर्वक वासा--
'घान््त रहो | सम ठीक होग। वेरा ही होगा जसा होना
चाहिए ! मैने प्पने राजकुमार की सेंतीस यर्ष सेबा की है-भौर
कमी वाषा नहीं ध्राई । मनुष्य परमात्मा नहीं मनुप्प दयाशु मी
नहीं उस प्रसन्न रखना बड़ा कठिन है! झोर समशिन उस्याना
प्रापको इस यार में कमी ध्रफ़्मोस न हांगा । छुम मर सड़को
गी माँ हाकर रहांगी ध्रौर उस्हें इस वात की प्राज्ा होगी कि
ब सदा तुम्दारा झादर करें।
वाइमाकोव यह पद बुछ्ध सुमता रहा भोर कुपबाप कान
में इकाना की प्लोर निहारता हुप्ता प्रॉसू ढसकाता रहा । उस्याना
भो सिसकती रही झौर यह पुरुष प्रपनी दु खह वानें करता
रहा--
“एट्ट ! यब्मेई मित्रिच | प्राप बहुत जल्दी जा रहे हैं।
प्रौर, यह सव, जब मुझे प्रापक्ी यहुत जरुरत है । यह तो मरे
गन पर छुरी चल्तान क समान है ।
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