दिनकर का निबन्ध साहित्य | Dinker Ka Nibandh Sahitya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Dinker Ka Nibandh Sahitya by सीमा गुप्ता - Seema Gupta

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सीमा गुप्ता - Seema Gupta

Add Infomation AboutSeema Gupta

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
टरामधारीसिह दिनकर व्यवितत्व और कृतित्व / 25 लिए अमूल्य सहायक है दितकर जी की अन्तरगतां के विविध सदर्भ उनकी लोकप्रियता मे द्र॒ष्टव्य है। राष्ट्रीयता दिनकर जी एक महान्‌ राष्ट्र भावनावादी बबि थे, जिनकी वाणी की यूज आज भी विद्यमान है। दिनकर जी की राष्ट्रीयता के तीन रूप दृष्टिगोचर होते है । प्रथम अतीत गौरवमान, द्वितीय बर्तेमान वी वारुणिक स्थिति और तृतीय उसवे' निदान वे लिए आतंकवाद का सहारा।* वे अत्यधिक उग्र विचारो के राष्ट्रकवि थे, साथ ही साथ भारतीय स्वतत्रता के समर्थक कवि भी । उनवा कहना था-- “राष्ट्री यता मेरे व्यक्तित्व के भीतर से नहीं जन्मी उसमे बाहर से आऊर मुझे आऊान्त किया है ै/४ दिनकर जी जन-जागरण चाहते थे, इसी कारण दे विद्रीही और ज्ातिकारी कवि बने । स्वभाव से ही वे भावुक और कल्पनाशील थे परन्तु वातावरण तथा सस्‍्कार ने राष्ट्रीयता के बीज वो दिये। मित्र जी का कहना है कि, “राष्ट्रीयत्ता उनकी आत्मा का प्रधान स्वर बन मया। * युद्ध और राष्ट्रीयत्ता की समरया पर भी उनका विचार है कि---'गरुद्ध और राष्ट्रीयता दोनों मे राज- नीति है. राजनीति जब तक सफेद लिबास मे होती है, उसे हम शाति कहते है, जब उसवे चषडे जाल हो जति है, तव वह युद्ध कहलाती है “० ओजस्विता से पूर्ण ओजस्विता वा परिचय हमे उनकी समस्त रचतवाओ में मिलता है। गौर वर्ण, उन्नत भाल, तेजपूर्ण नेत्र और ऊचे कद को धारण करने वाले दितकर जी ओज एवं तेज बे' धती थे । विद्याथी जीव का चित्राकन वरती हुई डॉ० साविभी सिन्हा लिखती हैं-- लखनऊ के सलोने विद्याथियो वे बीच उनवा दृढ़ पोद्प और ओजपूर्ण व्यक्तित्व अलग ही दिखाई दे रहा था 1” ओज नै धनी दिनकर जी / बचपन से ही धोर विरोधो से जूझते हुए अत में उन्‍मति के चरम बिन्दु पर जा है पहुचे। सन्‌ 1959 में उन्होने राष्ट्रपति से पद्मभूषण वी उपाधि प्राप्त की । रे 1 वातिमोहन शर्मा--नुरुक्षेत्र मीमासा, पृ० 27 2 भगवती चरण वर्मा--आज के लोव प्रिय कवि रामाधारी सिह दिनकर, पृ० 15 3 चक्रवाल, भूमिका, प्‌ 33 4 लक्ष्मीगारायण सुधाशु-- दिनकर, पृ० 89 $ दिनगर--शुद्ध कबिता वी खोज, पृ० 219 ॥ ५ गुगचारण दिनकर, पृ० 23




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now