शताब्दी निरुत्तर है | Shatabdi Niruttar Hai

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Shatabdi Niruttar Hai by भगवतीलाल व्यास Bhagavatilal Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऋजाप्यो हा झूए -- स्तन म्पे चढ़ो मेरे वन्धु ऊ'चे, बहुत ऊचे तुम्हें तो हर श्रृग पर श्रपनी पताका गाइना है। तुम्हें कया जो लुड़फते ही जा रहे हैं, वे सभी पत्थर कि जिन पर पांव रख कर चढ़ रहे हो तुम- हमेशा की तरह ही श्रांख मीचे । _ भौर पनसे हो रहे कुछ गात हैं क्षत, माथ विक्षत उन सभी के-जो तुम्हारे वाद कोई श्र्‌ग छूना चाहते हैं । (यदि बचे तो ) जरा सुन लो घमे क्या है ? ह स्वयं छूप्मी, औ्रौर छूने दो उन्हें भी ः जो तुम्हारे साथ-- लेकिन श्रा रहे पीछे, बहुत पीछे । कभी उन भ्रंतिम क्षणों में, जबकि तुम यह मान बैठो, सर्वस्व सब ऊंचाइयों का निद्ावर है- तुम्हारे पद तलू। मुमकिन बहुत है, एक ऊंचाई उठाए सर,- किसी अ्रपराजिता-सी, , कहे 'लो श्रत्र में बुलाती हूँ, क्या करोगे तुम ? इसलिए शो वन्धु ! चढ़ो ऊंचे, बहुत ऊंचे, किन्तु यह भी देखते जाओ कि कोई झा रहा नीचे, बहुत नीचे हर चुनोती केलने को होठ भीचे शताब्दी निरुतर है. 1१५




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