बोध पूर्व का भारतीय इतिहास | Bodh Purav Ka Bhartiya Itihas

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शुकदेव बिहारी मिश्र - Shukdev Bihari Mishra

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श्यामबिहारी मिश्र - Shyambihari Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूगोल एवं अन्य जानने याग्य बातें धर चर्फीले ठंडे पानी को उत्तर की झोर न आने देकर उत्तर का जलवायु ताइश ढंढा नहीं होने देती । हिमाचल आऔर दक्षिणी भारत के बीच में फिर भी समुद्र भरा रहा, किन्तु यह प्रथ्वी भी धीरे धीरे उठती गई तथा सिन्घु, गंगा, जमुना, न्नह्मपुत्रा, घाघरा आदि नदिया ढवारा लाई हुई सिट्टी यहाँ जमती गई, यहाँ तक कि. समुद्र बंगाल को खाड़ी तक ढकेल दिया गया श्औौर पूरा देश बनकर तैयार हो गया। गगा जी के सुद्दाने पर सुन्द्रबन के पास अब भी नई भूसि निकलती 'झाती है । एक समय वह था कि सध्य यूरोप तथा मध्य एशिया में भारी समुद्र लहराता था । धोरे धीरे वहाँ की भी भूमि उठकर जमेनी आदि देश बन गये । इसी समुद्र के विषय में छाया समान कुछ कुछ कथन प्राचीन झरथो में पाये जाते है । सारत में तीन ऋतु प्रधान हैं अर्थात्‌ जाडा, गर्मी और बर्सात । कार्तिक से आधे फाल्युन तक जाडा समझा जाता है, चैत्र से आधषाढ़ तक गर्मी और श्रावण से क्वार तक वर्षा । मुख्य बर्साती महीने सावन सादों है । माघ से भी प्राय: १५ दिन बर्सात होती है । भारतवष मे कितन ही देशो तथा विदेशी सबत थोड़े या बहुत प्रचलित हैं । विशेषत: विक्रमी सबत्‌ , सन्‌ इंस्बी एवं शाल्लिवाहन शाके का अधिक प्रचार है । ध्से काये सकल्पादि में सुष्टि सबत्‌ का हवाला दिया जाता है । भूमि सम्बन्धी हिसाब के काराज़ो मे फसली सबत्‌ पूर्व भारत में प्राय: लिखा जाता है. । बिक्रम-सचत्‌ चांद्र वर्ष है और शक सबत्‌ सौर। अधिकांश सारतनिवासी हिन्दू है जिनके मतालुसार द्वारिका, बदुरी नाथ, जगन्नाथ और सेतुबन्ध रामेश्वर चारों दिशाओं से चार धाम है तथा वयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, उज्जैन 'और द्वारका सप् पुरियो से हैं । ये द्शो स्थान परम पवित्र माने जाते है । भारत से १९ ज्योतिलिज्ञ परम पवित्र हैं। इनमे विश्वनाथ, घुष्णेश्वर, बद्रीनाथ,' केदारलाथ, बैद्यनाथ, श्रीनांथ, महाकालेश्वर, सोमनाथ, मल्लिकाजुन, ्यस्वकेश्वर, ओ कारेश्वर तथा रासेश्वर की ररणना है | घान्य में पूर्वों देशों में चावल की प्रधानता है। शेष भारत में धनो पुरुष विशेषतया गेहूँ का व्यवहार करते हैं झौर साधारण लोग जौ, जुबार, चना, वाजरा आदि का । 'अधिकांश लोग मांस नहीं खाते ।




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