पतन | Patan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रभाग महत्वाक्ातिया के पथ मं खड़ा होना वास्तर मे ख्याति प्राप्त
बरतने वा सुगम माग सिद्ध होता है सा भी उद्ा स्थानों मे, उसी समय
और अधिक मितव्ययिता के साथ । परिणामस्वस्प इसमे मुझे और भी
अधिक पुष्य प्रयास करन की प्ररणा मिलती थी कि उह (मेरे मुवक्किला
का) क्म-से-क्म मृल्य चुकाना पड़े। विसी हद तक दात-य वे मेरी
जगह चुरा ही रह थे। जा ग्राकाण जा याग्यता और जो भावुकता मैं
उन पर निदावर क्रताथा प्रतिदान म वह झामार वी उस भावना
का उन दते ये, जा मर मन मे उतके लिए उठ सकती था । “यायाघीश
दण्ड दत थे, प्रतिवादी प्रायश्चित्त वरत्त थ और मैं कत्तव्य वे भावो मे
सवा विमुक्त, निणय तथा दण्ड दाना से समानत परिरक्षित मैं था
टिज्य ज्याति स्नाव, निवघ महिमान्मण्डित ।
और सब बतादए बद्चु वया वह स्वग नहीं था ? जीवन झौर मेरे
बीच कई मध्यवर्ती नहीं | ऐसा था मरा जीवन । मुझ वमी यह नहीं
सीखना पत्य दि जिया कम जाता है। उसके बारे म मैं जम लेत ही
सवजुदध जान गया था । कुछ लागा वी समस्या होती है कि कस मनुप्या
स॒ श्रपती रखा करें, या वम-मे-क्म कस उनसे सममौोता बर लें। पर
मरे लिए तो समभौता पहत ही हो चुका था। मरी सगति सदा ठोक
चठत। थी। उचित हाता तो घुतर मिल वाता झावष्यकक््ता पड़ती ता
मौन रहता । प्राचार-व्यवहार में गस्मीरता भर सहज स्वाभावकितिां
दाना के लिए समान रूप से समंय था। इसोलिए मेरी लोकप्रियता
बहुत थी प्ौर समाज मे मरी सफ्तताएँ अनगिनत थी। मेरी ग्राइति
स्वीवाय थी, बिना शथत्ते नाच सकने वी क्षमता और विनयपूण विद्धत्ता
दाना ही मैन भपन ग्रापम प्रशतित वी थी और मैंन नारी भौर न्याय
दानो से एक साथ प्रम व्रत कौ--यह सरल नदी है--साम च्य प्राप्त
कर वा थी। मैं ललितरताआ, और खेव-कुद दाना मे रस लता था।
पर बहुत हुआ प्रवर्म पोर न क/गा, नद्बा ता कही भाप यह राह ने
करन गे रि मैं डीग हाँ रहा हें। मेराता हतना अनुराघ है कि
जी
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