बच्चों की आदतों का विकास | Bacchon Ki Aadato Ka Vikas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन विकास ६ शीघ्र बहन की दूसरी श्रवस्था--४५ से... ७ वष तक दृढ़ होने की दूसरी श्रवस्था--७ से... ११-१२ वर तक शोघ बढ़न की तीसरी अवस्था--११-१२ से... १४-१६ वषे तक . दृढ होने की तीसरी अवस्था--१४-१६ से १६-२० वष तक लगभग १६-२० वर्ष की अवस्था तक शरीर-दइद्धि श्रपनी चरम सीमा पर पहुँच जाती है तत्पश्चात्‌ प्रत्यक्तः कोई विशेष ब्ृद्धि नहीं होती हॉ अनुभव अवश्य बढ़ता है । यह बात दूसरी है कि किसी-किसी मनुष्य की जिसका विकास अल्पाहार रोग अत्यधिक दबाव इत्यादि किसी कारण से पूर्ण रूपसे नदी हो पाता है अनुकूल परिस्थिति मिलने पर इस समय के पश्चात्‌ भी सानसिक मावात्मक आर शारीरिक शक्तिया बढ़ती रहती हैं । विकास-काल और उनका समय सामान्यतः प्रत्येक दृद्धि तथा पुष्टि-काल श्पने निश्चित समग्र पर ही ता है परतु चाह कारणों से वह विभिन्‍न व्यक्तियों मे ्रागे-पीछे भी हो सकता है । बाह्य कारणा में से प्रमुख समाज जाति जलवायु लिंग- भेद आहार रोग अत्यधिक दबाव श्रसामयिक तथा आ्रत्यधघिक परिश्रम त्त्यघिक स्वच्छुंदुता इत्यादि है । एक उदाहरण से यह विषय स्पष्ट हो जायगा | श्रापने देखा होगा कि प्रायः छुटे बच्चे उत्सुकता के कारण विभिन्‍न चस्तुश्रों को छुआ-छेड़ा करते हैं और प्रायः तोड-फोड भी डालते हैं | अविज्ञ माता-पिता इसको शरारत के कारण समझ कर अथवा इस- लिए कि गे डरते रहे श्रौर भविष्य मे इस प्रकार की हानि न करें उनको जोर से डाटते-डपटते तथा मार-पीट देते हैं । जिसका फल यह होता है कि तवनोध बालक के मन में एक प्रकार का डर बेठ जाता हे और वह पिटने अथवा डाट पड़ने के डर से किसी वस्तु को नहीं छूता । फलतः वह सदेव के लिए सकोची तथा डरपोक बन जाता है और उसकी स्वाभाविक विक्रास-गति अवरुद्ध दो जाती है । यही दशा झन्य कारणों से भी होती




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