चिकित्सा बढ़ते चरण गिरते स्तर | Chikitsa Badhate Charan Girate Star
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दवाग्रों का दुरुपयोग
क्लोरोमाईसीटीन व भ्रन्य दवाओ्रों के आन में एक खास फर्क मह है कि
झन्य दवाइयों का कुप्रभाव, अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से होता है जबकि कलो रो-
माईसीटीन का क्ुप्रभाव कम खुराक से ही हो जाता है। कक््लोरोमाईसीटीन द्वारा
एप्लास्टिक एनीमिया श्रधिकतर व्यक्तिगत असहिष्णुता के कारण होता है जिसे हाई-
परसेन्सेटिव रिएक्शन या अत्तिसुग्राहिता कहते है 1
संतोकवा दुलेभजी अस्पताल में चार मरीजों में से तीन को बलोरोमाईसीटीन
की विभिन्न दवाएं दी गई थी । अन्य अस्पताल के मरीजों के बारे में मृत्यु के कारण
की पूर्ण जानकारी नही मिल सकी ।
क्लोौरोमाईसीटीन बहुत ही शक्तिशाली एवं कारगर रोगाणु नाशक दवा है ।
इसका प्रचलन ठाईफाइड (मियादी बुखार) मे अचूक जीवन रक्षक दवा के रूप में
शुरू हुआ, कारण तब इस बीमारी के रोगाणुओ के खिलाफ अन्य कोई श्रौपधि नही
थी । लेकिस यह अन्य अनेक रोगाणुओं के खिलाफ भी उतनी ही प्रभावशाली है अतः
इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार के संक्रामक शोगों मे होते लगा है । रोगाणु कोई भी हो,
थहू भ्रसर ती करेगी ही, अतः चिकित्सक इसका प्रयोग विना विचार किए और सोचे
समझे करते हैं और इसके घातक कुप्रभाव के बारे मे नही सोचते | अन्य झौषधियों
के मुकाबले काफी सस्ती होने के कारण गरीब तबके के लोगों मे तो इसका प्रयोग
श्न््धाधु ध होता है ।
क्यो करते है चिकित्सक ऐसा जबकि क्लोरोमाईसीटीन एन्टीवायोटिक देने के
लिए उनकी शिक्षा निम्न भ्रकार है--
यह दवा ऐसे किसी रोगी को नहीं दी जानी चाहिये जिसका पुरुता निदान
नही हो गया हो । पुरुता निदान का एक आवश्यक श्रंग है रोगाणुओं की पहचाव
ओर उन पर क्लोरोमाईसीटीन व अन्य एन्टीबायोटिक्स का प्रभाव परीक्षण 1
केवल लक्षणों के आधार पर यह दवा नही दी जानी चाहिये ।
जिस रोग या संक्रमण का अन्य किसी दवा से इलाज संभव हो उसमे यह
दवा नही दी जानी चाहिये 1
यह दावा बार-बार देना खतरनाक है ।
यह दवा कैवल अस्पताल में भरती रोगियों को ही दी जानी चाहिये !
जिसे दवा दो जाए उसकी हर 48 भण्टे में एक वार रक्त परीक्षा अवश्य
होनी चाहिये ।
रक्त परीक्षण पर दवा के विषाक्त असर के पहली वार श्रकट होते ही दवा
बन्द कर देनी चाहिये ।
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