सोहन - काव्य कथा - मन्जरी भाग - 1 | Sohan - Kavya Katha - Manjari Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महि मंडनपुर को आा घेरा, शत्रु दल लख घवराये,
राज मंत्री गण माल वेश से, संधि करके सुख पाये ।
नमा भूप को चले वहां से, सुन्दरपुर आ घेर लिया,
शत्रु दल लख सुन्दरेश ने, युद्ध करने का ठान लिया ।।
शेर-- आ गये रण भूमि में, संग्राम चालू हो गया,
लख वीरता मालवेश की, सुन्दरेश घबरा गया ।
उद्घोषणा की नगर में, सब लोग यहाँ से जाइये,
जीत होने पर बुलाऊे, तब सभी यहाँ आइये ।।
छोटी कड़ी--कोटी ध्वज एक सेठ सोच यों मन में,
भरे तीन सौ गाड़े सार सब धन में ।।
जाते मार्ग में साठ ऊँट मिले वन में ।
रोको गाडियें कब्जा हमारा घन में,
सुनते सेठ का हृदय टूट गया, तन से जाने लगे हैं प्राण ॥साठ० ५॥।
दोहा-- सेठ सामने आ गया, रण कौशल तिण॒वार।
देखा तो पाया उसे, प्राण दान दातार ॥।
तर्ज- (मांड मारवाड़ी )
हे अ्न्नदाता म्हारा, प्राण पियारा, जाणो हो के नांय ।।टेर।।
दुःख की विरिया साथ दियो थो, दीना प्राण बचाय,
किमकर भूलू अन्तर्यामी, उणा विरिया री सहाय ।।हो।।
श्राते समय में कोल कियो थो, दुख की विरिया मांय,
याद करो हाजिर हो जास्यू', ताबवेदारी मांय ॥हो॥
दोहा-- श्रांखें खोली सेठ ने, लखा भव्य दीदार ।
मीठे शब्दों में कहा, सुनो आप सरदार |॥।
तर्ज--(राधेश्याम रामायण )
इससे बढ़कर दुख क्या होगा, प्राण मेरे भव जाते हैं ।
करो कष्ट से मुक्त मुझे यदि, दया झ्ााप दिखलाते हैं 1 १1
चलो सेठ भ्रव चिन्ता छोड़ो, जहाँ तक हूँ मैं तेरे साथ ।
छीन सकेगा कोई न घन को, लगा सकेगा न कोई हाथ 11 २ 11
सेठ हुआ निर््चित हुक्म पा, गाडे सब हकने लागे। लि
खबरदार सव रुके रहो कह, गुणसठ ऊंट हो यये झागे 1 ३ 1 ८
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