दृष्टान्त - सागर भाग - 2 | Drasthant Sagar Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)# द्वितीय-भाग # श्ह
, ' दक्ष्मी नहीं 'सवेस्व जाये, मत्य छोडेंगे नहीं।
४ ब्ञान्ये नें पर सत्य से सम्पन्ध तोडेंगे नहीं की
निज सुत मरण स्तीकार है, पर वचन की र्ता रहे |
४ है कौन जो उन पूर्णजों के सत्य की सीमा करे ॥
- शपदि विलयमेनु राज्यलक्ष्मी स्परि पतलथवा कृपाणधारा ।
आपहरतुतर्ग शिर: कृतान्तो मगर मतिनपानागेपेतु सस्यात्त ॥
सत्येन सुख खलु ल+्पते सत्यालोप न भवति खलु पातकमू।
_ सत्यमित्ति दूं अपफतक्तरे मा सत्यमलीकेन मूहय]। ४, '
! “गरती'मूजित रजाए खुदास्त । हक
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! ११-त्याग श्र के
८ मं० दाधर के विषय मे राजा ते कंद्ा कि यदि म० गंदाघरश
दमारे दरवार म प्रार्वे तो एम उन्हें एक्र लाख छपया देंगे।
परन्तु यद झपनी विया झौग योगा+पास मे मस्त था, राजा के
यहाँ जाना स्वीकार न किया ।,पुक बार जब घर में खाने को एल
दाना सी न रए, तो उत्तकी स्त्री ने दवथ जोड़ प्रार्थना फी- दि नाथ [
चर में पाते को कुछ भी चहीं रष्टा, ध्मत्त एक पार धझयाप राजा ये
डश्पार में जायें। बद री का फहना सान कर घर से निदासख नदी
पर ध्याया और सेवंद फो पार करने के लिए कही | खेवट मे
घसराई के पेस माँगे। स० गदधर ने उत्तर दिया कि सरे पास दो
पक पसा भी नदी है । खेघट फद्दमे लगा--फ्पा तू ऐसा
गदाधर है जो तेरे पास एक पेसा भी नह है और रज्ा तुस्े
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