अमृत - मन्थन | Amrit - Manthan

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Amrit - Manthan by डॉ मंगलदेव शास्त्री - Dr Mangal Shashtri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देववाणी का नवजागरण भारत में सर्वत्र भारती ( देववाणी ) का सुप्रभात होवे ! समस्त संसार में भारती के विपुरू यश को फेलाता हुआ, विद्वानों के हृदयों में आशा-वल्ली के छुसुमों को विकसित करता हुआ, अत्वानान्थकार को हृदाता हुआ, नवीन ज्ञान के सूर्य के प्रकाश की किरणों के साथ सामने फैलता हुआ, सुन्दर सुप्रभात (८ नवजागरण ) भारत में सवेत्र इद्धि को आप्त हो | पु 1 4 सच्चे माग की प्राप्ति के लिए, बुद्धि को पुष्टि-मदान करने वाले, सुप्रभात ( नवजागरण ) की जय हो ! प्रजापति से उत्पन्न देवता और असुर दोनों पररुपर में स्पर्धा करने लगे । दण्डों और धलुर्षों की सहायता से उनमें से किसी की विजय नहीं हुई। तब यह सोचते हुए कि प्रजापति हमारा पक्ष लेगा, दोनों पक्ष प्रजापति के पांस पहुँचे। प्रजापति ने इससे तुम्हारी विजय होगी? यह कहते हुए ज्योत्ति' अर्थात्‌ प्रकाश देवताओं को दिया और श्रन्धकार असुरों को दिया। इसी से प्रकाश में देवताओं का और प्न्धकार में असुरों का उत्कर्प द्ोता है। इसीलिए कहते हैं कि देवता प्रकाश से और अस॒र अन्धकार से प्रेम करते दे । तब देवताओं ने अकाश को प्रयमतः प्रभात के समय द्वी देसा। उप-काल में जागनेवाली अभि का विस्तार प्रभात में ही होता है। श्रम्ति दी देवताओं का मुख है। इसलिए प्रभात द्वी ज्योतियों छी ज्योति है। जो विद्वान यह जानता है कि देवता प्रकाश से ही प्रेम करते दें, उसी का सुग्रभात ( ८ नवाम्युत्यान ) होता है, पद्दी अनज्ञानान्धकार को पार कर जाता है। ग्रकाश ही सत्य है। प्रद्मश ही अमृत दे ।




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