भाषा विज्ञान | bhasha Vigyan

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bhasha Vigyan  by डॉ मंगलदेव शास्त्री - Dr Mangal Shashtri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 ५१५११ । 0. भाषा-चिज्ञान १५७ तुलनात्मक प्रक्रिया । ऐतिहासिक प्रक्रिया के समान ही साधारण तुलनात्मक प्रक्रिया का झावछम्बन भी भाषा-विज्ञान में कम श्रावश्यक नहीं है। सामान्यतया भाषा के स्वरूप को समभने के लिये तथा भाषा-विषयक सामान्य सिद्धान्तां के निश्चय करने के लिये तो यह आवश्यक ही है कि हम भिन्न मिशन परिवारों की भाषाओं की तुलना करें । परन्तु किंसी भाषा के विशेष स्वरूप को सम॑भने के लिये श्रर उसके नियमों का पता लगाने के लिये भी तुढनात्मक प्रक्रिया को परम श्रावश्यकता है। उदाहरणाथै, शब्दो की व्युरपत्ति के विष्य मे ही उसका ठीक ठीक श्रनुखन्धान करने के लिये श्राज-करु स्व-सबन्धी भाषाश्रों मे पक शब्द्‌ के भिन्न भिन्न. रूपो की तुना काही बड़ा सहारा लिया जाता है। शरोर यह युक्ति-युक्त भी है । परस्पर संबन्ध रखने वाली भाषाओं में यह पायः देखा जाता है कि वस्तुतः एक ही शब्द भिन्न भिन्न रूपों में पाया जाता है। एक दी मूखल-शब्द का कुछ भाग एक भाषा में, कुछ दूसरी में, श्रार कुछ देने मे समान रीति से पाया जाता है। कुछ भाग दोनों में बहुत कुछ परि- बर्तित रूप में मिठता है। किसी भाषा में उसी शब्द का कुछ भाग, जा दूसरी भाषा में या तो बिल्कुछ दूर हो चुका है या श्रत्यन्त बदल गया है, बिल्कुल अपरिवर्तित रूप में जैसे का तैसा सुरक्षित होता हैं। इस प्रकार भिन्न भिन्न माषाश्रों की सहायता से किसी श्राघुनिक शब्द की व्युत्पत्ति के पता




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