मेरा जीवन | Mera Jeevan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
254
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)माता का अचल १७
बह नटखटपन भी ऐसा न होता कि माता तग आकर डाट-डपट करे या झझला
उठे। वह मेरा नटखटपन देखकर बहुत हसती थी और मुझे नटखटपन करने के
लिए बहुत बढावा भी देती थी ।
एक बार अपने आगन मे ही मै एक पडोसी लडके के साथ खेलते-खेलते झगड
पडा | पिताजी बाहर बैठकखाने में थे। आवाज सुनकर भीतर आये | उस समय
हम दोनो साथी कुश्ती लड रहे थे । पिताजी चुपचाप हसते हुए खडे रहे । माता
चल्हे के पास थी | पिताजी मेरे नखो को बराबर काटते-छाटते और साफ करते
रहते थे, इसलिए मेरे पास उस लडाई में कोई हथियार नथा हा, दात बडे
चोखे थे। मेरे साथी ने अपने चोखे नखो से मेरे शरीर को लहलुहान कर दिया।
मैने भी अपने दातो से उसकी देह मे कई जगह खून निकाल ढिये। किसी ने हम
लोगो को छेडा नही, क्योकि पिताजी अलग से ही सबको मना कर रहे थे । जब
हम दोनों उठा-पटक करके थक गये, तब अलग-अलग हटकर कहने लगे--अब
आओ, आते क्यो नही, आ जाओ एक बार !
इसी समय पिताजी दरवाजे की ओट से प्रकट हुए और हम दोनों को बाहर
ले गये | माता बार-बार मुझे अपने पास बुलाती रह गयी, पर पिताजी ने उधर
न जाने दिया । बाहर आने पर गाव के दो आदमियो ने हम दोनो को गोद मे
उठा लिया और हम दोनो की पीठ ठोकी जाने लगी । इसके बाद हम दोनो साथी
एक साथ ही तेल लगाकर नहलाये गये। लडने के समय हम लोग तनिक भी
रोये न थे, पर नहाने के बाद नोच-खसोट के घावो में कुछ तकलीफ मालूम हुई
इसलिए हम लोग रोने लगे। तब तिल के मीठे लड्डू दोनों हाथो मे दिये गये ।
बस, आसू की आखिरी बूदे गालों पर लुढककर लड्डुओ पर आ गिरी। खारा
द्् ्छे
पानी भी मीठा हो गया !
मेरे पिताजी बहुत अच्छे रामायणी थे। जब कभी नौकरी से छुट्टी पाकर घर
आते, सुबह-शाम दरवाजे पर रामायण की कथा हुआ करती । एक पाडेजी ऊचे
से ऊचे स्वर मे रामायण बाचते और पिताजी भी वैसे स्व॒र मे अर्थ कहते । कथा
सुनने के लिए गाव-भर के लोग जुट जाते । उन्ही लोगों मे एक किसान भी आता
जो शिवजी का सच्चा पुजारी था। उसका नाम जगेसरा था | पर गाव के
लोग उसे 'गोदी' कहते थे । उसने पूजा-फूल के लिए एक बहुत अच्छी फुलवारी
तैयार की थी, जो यो तो बहुत छोटी थी मयर सुगन्धित फूलो से भरी हुई थी ।
वह दोनो जून बडी तैयारी से पुजा करता था । कथा में भी आता तो अजली-भर
फूल जरूर लाता। कभी-कभी शिवजी का प्रसाद 'फूलों का गजरा' भी लाता ।
मै उसके साथ उसकी फूलवारी और मदिर में जाने लगा । सूघने के लिए
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