शान्तिदूत महामना फूजिई गुरुजी | Shantidoot Mahatma Foojiee Guruji

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Book Image : शान्तिदूत महामना फूजिई गुरुजी  - Shantidoot Mahatma Foojiee Guruji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ अहिसक स्वतन्त्रता-संग्रम का हादिक समर्थन करते हुए अपना सक्रिय योगदान समर्पित किया । गान्धीजी के सम्पर्क में आने के बाद अहिसा के उपायों में उनका विश्वास दृढ़ से दृढ़तर हो गया । गान्धीजी से अपनी सफल भेंट के पश्चात्‌ फूजिई गुरुजी ने एशिया की यात्रा प्रारम्भ की, किल्तु अपने प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने आनन्दभाई (मारुयामा सान) तथा केशव भाई नामक दो बौद्ध भिक्षुओं को गान्धीजी के समीप सेवाग्राम-आश्रम में भेजकर गान्धीजी से अपने सम्बन्ध को सदेव के लिए मजबूत बना लिया । इन दोनों भिक्षुओं ने फूजिई गुरुजी की ओर से भारत के स्वाधीनता-संग्राम में सक्तिय रूप से भाग लिया और जेल की कठोरतम यातनाएँ भी हँसते-हसते सहन कीं। ब्रिटिश- सरकार के कमंचारी जब केशवभाई को पुलिस की हिरासत में लेने के लिए गान्धीजी के पास सेवाग्राम आये, तब कानून का पालन करते हुए बापू ने उन्हें पुलिस के सुपुर्द कर दिया। बिदाई के उन क्षणों में बापू ने जो वचन कहे थे, उनके स्मरणमात्र से ही हृदय अभिभूत हो उठता है। फूजिई गुरुजी के प्रतिनिधि इन बीद्ध भिक्षुओं को, भारत के स्वाधीनता-संग्राम के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटना के सन्दर्भ में, बड़े गौरव के साथ स्मरण किया जाता है।. उसी समय के फिजूई गुरुजी का व्रत बना--भारत जैसे अहिसक नीतिवाले देश के संकट का प्रतिकार अथवा राजनीतिक अन्याय का प्रतिबाद करना । सन्‌ १९३५ ई० में फूजिई गुरुजी ने बर्मा की यात्रा की । बर्मा-यात्रा के पश्चात्‌ वे तीसरी बार भारत पधारे। इस बार उनके भारत-आगमत का एक महान्‌ उद्देश्य था, जिसकी पूत्ति में उनको पर्याप्त सफलता भी प्राप्त हुईं। बचपन से ही ऋान्तिकारी बौद्ध धर्मंगृरू निचिरेन की यह भविष्यवाणी उनके मन में बहुत गहराई से अंकित हो गई थी कि ये विश्व में पुनः सद्धर्म का उत्थान होनेवाला है एवं वह सूर्य दिशा (जापान देश) से चरद्गदिशा (भारत) को ष्याप्त करता हुआ विश्व-व्यापी रूप धारण कर लेगा । आचार्य निचिरेन बोधिसत्त्व की इस भविष्यवाणी में फूजिई गृहजी की आस्था इतनी प्रबल थी कि वे इसे साकार करने के लिए ही सन्‌ १९३५ ई० में तीसरी बार भारत पधारे और इसी वर्ष कलकत्ता में सर्वप्रथम बौद्ध मन्दिर की स्थापना की । भारत के आधूनिक युग के इतिहास में सम्भवतः यही सबसे पहला शान्ति- मन्दिर है । सन्‌ १९३६-३७ ई० में फूजिई गूरुजी ने राजगीर, बम्बई आदि स्थानों में सद्धर्म- शान्ति-सन्दिर की स्थापना की । सदधमे-सेवाकार्य की एक लम्बी योजना अनिश्चित काल तक भारत में रहकर उन्हें पूरी करनी थी, किन्तु दुर्भाग्यवश इन्हीं दिनों द्वितीय विश्वयुद्ध के बादल विश्व के इतिहास में मेंडराने लगे । जापान पर चीन ने आक्रमण




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