भारतीय सौंदर्यशास्त्र की भूमिका | Bharatiy Soindarya Shastr Ki Bhumika

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Bharatiy Soindarya Shastr Ki Bhumika by फतह सिंह - Fatah Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सौदयानुभूति ड गय और स्प्॑म वे रूप में हम सुखद ग्रनुभूतिया होती हैं जो उबत चक्षु ग्राह्म अथवा थोष प्राह्म सौदर्यानुभूति से किसी प्रकार कम नहीं। जिस मोजन ग्रयवा मिष्ठान्न को देखकर या यादकर के मुह में पानी झा जाता हो उसे कौन सुन्दर ने कहेगा ? नासिका के माध्यम से आ्राप्त गघ के सौदय का प्रमाण वादम्बरी के महाश्वेता-वृत्तात म मिलता है जहाँ पारिजात मज्जरी की गध का प्रमाव बतलाया गया है। साधारणतया भी रसोई अथवा बाग से भाने वाली गघ को गहरी साँस के द्वारा सूघन वाले तथा ' श्राह, कसी सुदर याघ है! कहने वाले प्राय मिल जात हैं। त्वचा की स्परटीद्रिय के माध्यम से प्राप्त सौदय क प्रमाण परिरम्भण चुम्बन, श्रालिझुन श्रादि मे देखे जा सकते हैं। जिस स्वाद गाघ तथा स्पा को हम सुटर या सुखद मानते हैं, उसे पाने ओर श्रथनाने के लिय हम उसी प्रकार लालायित हा जात हैं जिस प्रकार सुदर रूप प्रथवा सुदर ध्वनि की | काव्य-सोन्दय चक्षु श्रोत्र, जिल्ला नासिका तया त्वचा के माश्यम से जिस सौदय को अनुभूति होती है उसकी तुवना हम उस सोलल्यानुभूति स भी कर सकते हैं जो हम काय के माध्यम से प्राप्त होती है और जिसे प्राय रमागुभूति की सवा दी जाती है। कालिदास झ्रादि कविया के काज्य मे हम विस सौन्दय की प्रतीति होती है वह चक्षु थोत्र, जिद्वा, नासिका तथा त्वचा स॑ ग्राह्मय सौदय तो नही है परतु तत्त्व वह उसस मिन भो नहा है क्योंकि वस्तुत विश्लेषण करने पर बात्य जिन मानस प्रत्ययां प्रमवा चित्रा के माप्धम से सहूृदय पाटक वो सौरदर्यानुभूति प्रदान करता है व चक्षु, करांत्र, जिद्ला, नासिका तथा त्वचा द्वारा प्रतत्त रूप शात रस, गध एवं स्पा के मानस प्रत्यय ग्रथवा चिंत्र ही तो होते हैं। प्रस्तु काप का सौदय मानस ग्राह्म है 1 मानस-ग्राह्म सौ दयें काय का सौदय ही क्यों , जिस सौदय को ऊपर हमने चश्ु भ्रादि इंडिया द्वाशा ग्राह्म बहा वह भी तो अततोगत्वा मानस ग्राह्म हो होता है । सुन्तर थिएु प्रयवा पुष्प क साथ चक्षु इद्धिय का सानिक्प' हाने पर भी तो सौन्दय की श्रतुभूति मानस मे ही हाती है जिसके फ्लस्वरूप विभाव (शिपु या # देसिये--- “चदआध्य सौन्दर्य, पृष्ठ २




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