अक्षरों का विद्रोह | Patrakshao Ka Vidaroh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Patrakshao Ka Vidaroh by रामदेव आचार्य - Ramdev Aacharya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामदेव आचार्य - Ramdev Aacharya

Add Infomation AboutRamdev Aacharya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
एक ईमानदार प्रणय-गीत यहा आओ और रख दो मेरे होठो पर अपने दहकते गुलाब, भर दो मेरी वाहो में अपनी देह दे अगारे, घधका दो मेरी धमनियों म ज्वालामुखी लपटें, मेरी नम-नस में डाल दा तेजाब, अपनी जुतफा से कहो- मुझे डस ले सौ बार, आज की रात ता हो जाने दा मेरी मौत, बनने दो चाद का इस हसीन मौत का गवाह मेरे खून को खून की प्यास है मेरी देह्‌ को देह्‌ की भूख है 1 अर # 5.2» 1/




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now