गीता - विज्ञान | Geeta - Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.63 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सक्रान || के
समन्पी कर्म करने बालों का पद इचा रक्सा गया है, तथा स्थूल करें
करने वालों पर विचारक लोगीं का.शासन होता है; परन्तु इसका यह
स्तातर्य नहीं हैं कि स्थूल कस करने बालों को अनावश्यक एवं तुच्ड
समेक कर पदुदुलित रखा जाय धर उनका तिरस्कार अथवा श्ववहे-
न्लना की जञाय4... ड दर ,
गोपाज्-पिता जी. इसपे तो यर सिद्ध हुझा कि गीता ने जाति
-की झपेक्ता कर्म दो हो प्रधान माता हैं ;
पपिता--. दा, गोपाल ! बहा जाति श्रादि का कोई जिक नदीं है ।
व्युद्दां प्रघानदा- कारये को दै और का विमाप के जिये ही बलुंरवस्था
का विधान किया गया है । यह संपार झात्मा झथदा परमात्मा की
पनिशुणात्मफ अकृति का बसाव है! । इन गुणों के वाम संत, रच छौर
चस है । सवगुण ज्ञान खत है, रजोपुण किया सा है' घर
स्तमोगुण स्वूजता बता जढ़ता स्पह्मप है. । इन तोनों गुण की कभो
ब्ेशीं के “धार :पर काये करने के चार प्रधान विभाग किये गर हूँ.
जिनमें ससल शुण की प्रधानता दो, उनके छिये' शिक्तानसम्ब्र्धी;
रजोशुण की अधानता बालों के लिये रहा समन्यी; रज-तम गुणों
की प्रघानता घाजों के लिये खेपी और ब्यापार सत्प्वी तथा
न्तमोशुण 'की अ्रशानता बालों के लिये शारीरिल श्रम सम्पन्पी कार्य
नियत किये गए हूं। ये चार प्रकार के फाये निभाय केवल हिंदुओं, मैं
“ही नदी हैं, बल्कि स्रमी समय समाजों में मित्र भित्र-खपों में पाये जाते
हूं। वर्तमान में दिन्दुओं ने इस फार्येडिमाग को . व्यवस्था का
-दुखपरयोग करके मिशन मिन् कारें करने वाले संघों को जाति का रुप
दें दिया 'और एक दूसरे को सबंदा इयकू समकने जग गरे। इस किले:
स्वन्दी का -यद दुव्परिणाम हुआ कि यद जाति दू परे छोगों री प्रति-
-दंदिको में उइरने में गो घपमर्थ हो गे! दास्तत् मेँ इस काय- विभाग
की ब्वव्यवस्था के जोड़ को दूनरो कोई हिव कर कोर स्थायों दयपरधा
-संसार सें छात्र तका नहीं वनी है |
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