संस्कृत - नाट्य - कोश भाग - 1 | Sanskrit Natya Kosh Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( उद्दौं्त ) कथावस्तु का निर्वाह कशावस्तु का निर्वाह इस रूप में किया जाना चाहिये कि कोई भी अग अधिक बड़ा और कोई छोटा प्रदौद न हो। वाटक में ५ सन्यिया होते हैं। उत्तो के अनुसार कम से कम ५ अकें का विधान है। यादि एक अक में एक सच्चि की पोजदा की जाय ठो पूष नाटक सनुलिव हो जापेगा। किनु यह कोई अख्वार्य निमम कहीं है। फिर भी इतगा ध्यान रखता चाहिये कि नाटक इतना बडा न बन जाये कि दर्शक उबने लगें। अब दियम बनाया गया है कि किलो गाटक में १० से अधिक अक पहीं होरे चाहिये। अक में अप्नप्बद्ध कई घटनायें दृश्यों के राम पर दिखलाने को जो पाश्दात्य पत्मण है वह आएीय आचार्य को पात्य नहीं है। अक के अन्र्पह पूर्ण रूप से सबद एक हो घटना दिलाने की परम्पण है। छोटी छोटो अन्य घटनायें अरोपकेपरों द्वाव दिखला दी जादी है। यद्यपि भारठीय नाट्शारूकरों ने सक्‍्लतों का विवेचन नहीं किया है जैस्ताकि स्पल, कार्य और काल संकलन को परम्णय पाइवात्य झाहित् में है, फिर भी एक दिन में रिर्वर्स का को एक अक में दिखलाने और रेश अश को सूच्य बराने का निर्देश भारदीय नाटय को भी सकततों के पर्याफ निकट लाग है। इसी प्रस्ग में अप्ोपक्षेपरों का भी विवेचन किया गया है। भ्रकरण यह पूर्ण नाटक का दूसरा प्रकार है डिसमें रचना की सी प्रवृत्तियों का रटक के अनुसार ही निर्वाह किया जाता है। क्णनक और पत्र कल्पिव एवं अपरिचित होदे हैं, किन्यु उनकी अच्दशात्मा अपरियित नहीं होठी। वे पा हमारे साथ येज चलने फिलने उठने बैठने वार्लो के समक्ष हो होते हैं। अतएवं उतसे आत्मीयदा झना लेने में दृठिनाई नहीं होती) अधिशणत्‌ उनकी भावनायें परिशोलकों की भावनाएं बन जाती हैं और परिशीतक उस आत्यौयत के प्रभाव से रसास्वादन में सक्षम हो जाग है। बस्तुंव नादक के आदर्श पर्ठों को अपेक्षा प्रकरण के पावर लोकवृत्र के अधिक निकट होदे हैं। प्रकरण का मापक ब्राह्मप, बनिया, अमात्य इत्यादि में कोई भी होता है। नायिका कुलवती भी होती है और देश्या भी अदवा दोनों वा मित्ताजुला रूप होठी है। रएदर में देश्या दायिका है,पुष्णदूषितक में कुलवत़ी रे और यृच्छवटिक में दोनों हो। किन्तु उनके भी अपने आचार और मर्यादायें होदी हैं। प्रकरण के मादक में गटक के नायक जैद्यों उदातवा नहीं होतो। कुछ लोगों के मत में निम्नजादि को री भी गापिझा हो सकती है। नायक अधिकता धीरशान्त होवा है किनु कुछ लोग उसे धौरेदाद रखने के भी पद्षपाती हैं। जिम प्रकाण में विट, घेर, क्विव, शकाए इत्यादि पात्र होते हैं वह सकीर्ण प्रकरण कहा जाहा है। नाटक और प्रकण दोनों पूर्ण दाटक के फकार हैं; किन्तु रस निष्मत्ति और रप्तास्वादन के सुकर होने के कारण नाटक का महत्व अधिक है। समाज के अधिक निकट होने और




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