आधुनिक हिन्दी कथा - साहित्य और चरित्र - विकास | Aadhunik Hindi Katha - Sahity Aur Charitr - Vikas

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Aadhunik Hindi Katha - Sahity Aur Charitr - Vikas by डॉ॰ बेचन - Dr. Bechan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रप्पाय १ विषय-प्रवेश मनुप्य का प्रारम्मिक साहित्य कपा-प्रवात है। उस समय कृपा किसी घटना का रोचक बर्षन मात्र रहीं पी। बह मात्र मतोर॑ंजन का सापन मी तहीं पी। बल्कि जादघ-शीषण के इतिक ध्यक्ाए में इप्टास्द प्रौर उच्दाहरण के शप में प्रस्ुद की णाती थी | कपा की यह प्रवृत्ति प्रपरधिक्र सोकप्रिय थी। छोटे बच्चे भ्रपनी दारो-सागी छै, प्रौड़ भौर पुबक कयागाचर्कों से कट्टासियाँ सुना करते थे । राजसमार्पों में कृपा सुनाकर ममोरेगन करने दाल शोर्यों को छासकर नियुक्त किया जाता था। मारत में मे विधृूषक पौर ऐंग्सो-सेक्सत राजसमाों में “स्सीमेन! के शाम से मशहूर पे । मे धूम-पूमकर 'राजसमाप्रों की कमा प्राम जनठा को भी सुनाया करते थे ।९ लाटक, उपस्यास कहानी भौर प्रवष्प काप्प के रूप में हमारा साहिएप मी कषा घाहित्प ही है। परिषामयुषत घटना का बर्षेस ह्वी कपा है जिसमें मनुप्प जीव, या करड़ पदार्प के सम्बर्ष की किसी विधेष प्रबस्था या प्रबस्याप्रों का प्राहि से ध्रम्द तक बर्धन हो। ये बंधन यदि सर्प पर प्राघारित्र हों तो ऐतिहासिक कास्प (कपा भाटक प्रबन्‍्प काम्य) मा इतिहास बहता है। थदि काल्‍्पसिक हों ठो कपा कहानी प्राश्यापिका, छोटी कहानी छपस्यास नाटक या प्रबस्ण काप्य को रचता होठी है । जिप्कुपें यश कि “कया साहित्य हमाऐ स्पक्टियंत प्लौर सामाशिक औवश की समस्याओं को परस्पर समाय सम्दस्शों में पड़ुकुए जीबन बिठासे के माध्यम से हू करने का एक विद्षेप प्रकार का कसाटमक रूप-भिषाम है।”' कया का अभ ओर तत्त्व साहित्यदर्पण के रघयिता विष्यगास ने कहा है कि ?हा्इ के दरबस से जो रचना मुक्द हो इसे गय रहते हैं । ' भारतीय शान कोप! प्रणिपुराण में कहा पा है--/प्रपएः पहंताने घच्च ६ उमीशा प्राप्त, पु० ६५१ $ प्रमहियाद, पृ० १५१ ॥ साहित्प इपस पृ० २२६




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