महाभारत का अर्थ | Mahabharat Ka Arth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)व्यास ने प्रेपपूण आदर से बहा, पया आप मुझे मेटो धृष्ठवा वे विए
क्षमाटान नही देंगे २!
घ
नारद ने मानपूजत बहा, 'इसमे थापको कोई दोप नहीं, हासन वी बोई /
बात नही। जो बनता है वह वियडता ह 1 आमा तो बशत है 7
डे
ऋपिं व्यास 1 एक शका प्रस्तुत की, आपका कथन पर्म फेलस्यायमे
अक्षरश सत्य है | फिर भो आप से एफ प्रश्न है। बया एकें पफे-मानब-का
बीने के रूप में अवतरण सम्मय हैं? और,वया वह जम और मर से
घिनिर्मक्त नही होता ? यदि हाँ, तो आप जमे प्रह्मविद् का पास मजा और
पुनज'म दे कालचकर भे पुन बयो आना पडा ?ै!
जी
तारद न स्पप्ट कह, 'पूण मानव परमात्मा हो 5, नर र॒रि | बट सच
मुक्त है । थे पुण मानव ही अपने अहकार जाय अचाने से अचलचत हे हू छल
रहता है|
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