महाभारत का अर्थ | Mahabharat Ka Arth

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Mahabharat Ka Arth by डी॰ डी॰ हर्ष - D. D. Harsh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्यास ने प्रेपपूण आदर से बहा, पया आप मुझे मेटो धृष्ठवा वे विए क्षमाटान नही देंगे २! घ नारद ने मानपूजत बहा, 'इसमे थापको कोई दोप नहीं, हासन वी बोई / बात नही। जो बनता है वह वियडता ह 1 आमा तो बशत है 7 डे ऋपिं व्यास 1 एक शका प्रस्तुत की, आपका कथन पर्म फेलस्यायमे अक्षरश सत्य है | फिर भो आप से एफ प्रश्न है। बया एकें पफे-मानब-का बीने के रूप में अवतरण सम्मय हैं? और,वया वह जम और मर से घिनिर्मक्त नही होता ? यदि हाँ, तो आप जमे प्रह्मविद्‌ का पास मजा और पुनज'म दे कालचकर भे पुन बयो आना पडा ?ै! जी तारद न स्पप्ट कह, 'पूण मानव परमात्मा हो 5, नर र॒रि | बट सच मुक्त है । थे पुण मानव ही अपने अहकार जाय अचाने से अचलचत हे हू छल रहता है|




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