हिन्दी साहित्य का इतिहास खंड 1 | Bhaktikal Aur Aadikal Ka Itihas Khand 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६) उतपा*--बप्साहहू गिहुसिय वणराइ!। मसमंथमित्तु मस्मामिस्त बा आ फुष्टिरि हिमडा मास बर्सत । विरूपप्ट राजस पिककशतय कस्तु। सली दुक्क बोसरिया मसाई। संसक्ति भमरत किम रुममुणई | दीस पँघच भिरः णोबघ होइ | छ्ाउ पियठ बिससठ सहु कोइ ॥ भणपास ( धतपास ) की हृथि “'मबविय्रयतकहा ( भविष्पदत्तकपा ) इस पा्परा की एक कौर महत्वपूर्ण क्रांस्प-रक्ठा है । अस्तुत कृति छोक-गाषाजों कौ काब्यात्मक अनुचेतमा के जाघार पर पद्धगित है। अपक्र प्त काम्य गिबरा का पूसरा श्ुप 'परमात्मकाप्ट' 'मोग्रासार'ं और 'सावयपम्म दोहा में मिठठा है। इतके रघनाकार हैं जोशंबु ( ११वीं धताम्दी) । शामशिह्‌ #ी $ति 'पाहुड़ दोहा' इस धस्बर्म की एक अन्प कृति है । अपक्र ए काष्य-पारा का तीसरा स्प बौबोहा एवं “बर्याफ्रों' में मिर्ता है, (द्िन्दी छाहित्प पृ० इ० पृ० १४८) । इस प्रकार 'सरह! र्ह', 'सुइ्पा इत्पाधि की हतियों इस काब्य-बारा के अन्तर्गत जाती है परम्तु उतकी रक्षमा्म पण्वर्ती अपश्र घर की हैं जिनका विस्संयण आगे के पृष्ठों में किया सया है। मपश्र छ में मुक्तक काष्यस्तशपों की भी व्यापक्ता मिछती है । विपम की दृष्टि से उन्हें 'बीर' और 'प्रसम” मुक्तक श्पों में विभाजित करते हैं। हेगभग के व्याकरण में संकड़ित दौहों में इस बोतों श्पों की उपसस्बि हो बातो है। उनमें होक-भबन की उद्ात्त बीर अनुचेता और श्र गार-सबेल्गा प्रठिबिम्गित गिख्तों है। इन दोह़ों का संकशनत हेमचन्द्र मे छोकजीबत से किया है। छा ०--- हरि शश्याविठ पैमणइ निम्हइ पाड़िउ श्रोठ 1 एबहि राहपमोहर थ॑ भावह त॑ ड्वोउ ॥ “हर को प्रगघ में दृत्द करी हैं झो४ गिस्मम में पड़े इस प्रकार राजा के पयापरों की छो अभ्िप्तापा हो बह हो प्रथम की कृद्देसिकाओं की सौरदर्यपूर्ण अमिम्प॑ण्जमा प्रस्तुत संदर्भ की ज्िफ्रेपता है । अइ केजेइ परादीसु पिउ जमा हृह् करीपु। वालिय मदर छरागि डहिएं सम्दन पह सीधु॥ 'बदि छौमाप्प से मैं मफ्से प्रिम को था जाऊं तो अपूर्भ कार्य कशेयी श्र




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