राही मासूम रज़ा | Rahi Masum Ranja

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Rahi Masum Ranja by हरिपाल त्यागी - Haripal Tyagi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेरा गांव, गर लाग / २३ का यह बन देवायी । # मौजूद था इसलिए यह बात मुझे मालूम हो गयी 1 मर यह शायर आज भीन मालूम ही--मुन्रा जौर गुरुया । तो शायर पहली चच्ती भी ने याद हम क्योकि उनके मरने क्ते ये सेना बहुत छोनी थी. 1 है बचे छमे सा थी अर बहर बडी जद चोनती थी 1 हम लोग ज्दू अब्बा ने चू$ ९ ओं हि तो उदृ बात है याजी शान के बाद लखनऊ की है क्यो. इसलिए क्मी-क्मार बह्भी उदू बोल चनी है, मेयर हम लोग आज भी बल जवान बालत्े हैं जा जवान अम्मा बोचा करती थी औरजा जवान नसीब बुआ के करती थी। और जो जकन मता बुआ इंद्र और रेऊफ की थी 1 भोर जो जवान गगोती मीर साहयान की है--यानी ३1 भरी छोटी भफ्सरी चार नह बग्ग से हिल्जे री टी अब तक उस वोसन। । नही था सका है; पहे आज भी हैप के साथ पी. भाजपुरी ज्वृ कासलतो ह | जक्नि री शगाकरती बी । # उनकी बाते पनन क लिए का मे बेद्ा रहा या। व जय बिन्ि रह अपनी बोचो के) मे हमारे पर है चातावरण मे भजन रही । घी $ पा मौका छमी बाई मे षा टामी अपने ज़मान है? वेश्या थी । रिटायर कोन के कान बिक भक्त हो गयी और सहर गज बाय मे रहने लगी जो उनकी जवानी + मे उह उनके ईग ने न्यि था है उढ़क ने उन वा शान का >उज्यम ले. दमा कायम >या। स्री नम वकक्‍ीस तिया। चुताके मे जी व्िक्चिक भरगर आज यी। उनके साय पारी अूरबूरत टैआ >रता का जियम सफर क्रान ये नली दिन) | हुआ गे 1 मजतती धान ये पहक बह सायलक आ॥ चढाती । & इन्कार इन तब वह अप हर मिजोग रे इाल्म बचाव गुरू करन 1 और है बाकी




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