चिन्तन की धवल धाराएँ | Chintan Ki Dhawal Dharayen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धर्मचन्द शास्त्री - Dharmchand Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सूक्तिया[१७
१२३ हनुमान के हृदय में राम को तरह सत्य घम मानव मानव के हृदय
में रमा रहना चाहिए ।
१२४ प्रेम और वात्सल्य की गगा बहाते में ही व्यक्तिगत और पारिवारिक
प्रसन्नता निहित है ।
१२५ अनुशासन, सयम, सदाचार एवं शिष्ट व्यवहार जीवन के अनमोल
अलकार हैं।
१२६ धम मानव जोवन वा सास है, प्राण है, श्ए गार है ।
तप
१२७ तप के सर्वोत्तम प्रकार है. नम्अता, तिरभिमानता एवं सद्दिष्णुता ।
१२८. सहनशीलता (सहिष्णुता क्षमा) जब स्व॒रसगमी बन जाती है तभी
तपस्या में निखार आता है ।
१२९ तप, जप, और मौन से व्यक्तित्व व| विकास मनोबल व आत्म गुणों
का सवधन होता है उपदेशदान की क्षमता व वाणी की प्रभावक्ता
बढती है मोर झात्मा में परम शाति की उपलब्धि होती है ।
भोत
१३० धरती की श्यामल साड़ी को डिसाद की दाती एक ही झटके में
उतारकर फेंक देती है मौत का एक ही झटका प्राणी को भननन्त की
गोद से सुला देता है ।
कुर्सी की घोरी
१११ यह मुग अजीब विचित्रता लिए हुए है, इसम राटी, कपड़े, स्वण व
जवाहरात की ही नहीं, कुर्सो की भी चोरी होती है वह भी स्फद-
पोश वषपड़े पहनकर सभ्य तरोके से 1
कच्चे कान
११२ कच्चे कान वा झ्ादमी, पर चालित यत्र के समान होठा है वह
User Reviews
No Reviews | Add Yours...