श्री गुरु समग्र खंड 3 | Shri Guriji Samrg Khand 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वयसेवर्कों से धर्म, वेद आदि के बारे में प्रश्व पूछे। वाल स्वयसेवक
उनके प्रश्नों के उत्तर ठीक से नही दे सके। जब वे सज्जन मुझे मिले
तब कहने लगे- 'सघ मे अज्ञानी लोग आते हैं? मैने कहा- “सघ
विद्वानों का संगठन नहीं है। वैसा होता तो आप ही सरसघचालक पद
पर विराजमान होते। हम सगठन का व्यवहार जाननैवाले हैं, अन्य विपय
हमारे नहीं हैं ।' स्वयसेवको के हृदय प्रज्ज्यलित कर उनका अभेद्य सगठन
करना अपना कार्य है। दूसरों के समाज-सेवा के अन्य विषय होंगे, हमें
उनसे कुछ लेना-देना नहीं है।
अपने जैसे दस निष्ठावान स्वयसेवक बनाना प्रत्येक स्वससेवक का
काम है। उससे अपनी सगठन-शक्ति अजेय होगी। वही सभी समस्याओं का
एक ही सतोपजनक उत्तर है। अन्य सेवाकार्यो से लोगों के साथ सपर्क तो
स्थापित होता है, परतु वे लोग निरपेक्ष देशसेवा कार्य में सहयोगी बनते ही
हैं, ऐसा अनुभव नहीं है। परतु जिनके अत करण में प्रखर ध्येय-निष्ठा
प्रज्ज्यलित है, उनके सपर्क से लोग निकट आकर अपने हो जाते हैं। यह
अपनी कार्यप्रणाली है, हमें इसे आत्मसात् करना चाहिए।
शघाबुक्ूल बने
कुछ लोग सोच सकते हैं कि “ये सारी बातें व्यावहारिक कम,
आदर्शवादी अधिक हैं। हम इतना वोझ उठा नहीं सकते। अब हसममें
परिवर्तन होना असभव है। हम जैसे हैं, वैसे ही सघ में रहेंगे। मगर हमें
सोचना चाहिए कि हम राष्ट्र के प्रति प्रामाणिक रहें या अपने लहरी स्वभाव
के प्रति। प्रत्येक को निश्चय करना चाहिए कि “मैं अपने स्वभाव के दोष
और दुर्गणों को दूर कर स्वय को सघानुकूल बनाऊँगा। पशु और निर्जीब
वरतुएँ जैसी होती हैं, वैसी ही दूसरों द्वारा उपयोग में लाई जाती हैं। मनुष्य
को चाहिए कि वह स्वय को योग्य बनाकर श्रैष्ठ काम के लिए अपना
उपयोग होने दे। सगठन की इच्छानुसार काम करने की शिक्षा मैंने प्रजनीय
डाक्टर जी के चरित्र से पाई है। उनकी धारणा थी कि मेरी इच्छा के
अनुसार सघ नहीं चलेगा, सघ की इच्छानुसार मैं चलूँगा। हमें उनका
अनुसरण करना चाहिए। हमारा दृढ विश्वास हो कि सघ जो-जो कहेगा
वह अवश्य होगा। इस विश्वास से ही मैंने सरसधचालक पद का उत्तरदायित्व
अहण किया है। मैं इस पद के लायक था या हूँ, ऐसा मुझे कभी नहीं लगा।
मेरा विश्वास है कि सघ की इच्छानुसार निष्ठापूर्वक काम किया जाए, तो
श्रीशुरुणी शमग़ ख्ड ३ ॥॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...