राजनीति शास्त्र के मूल सिद्धान्त | Rajeeti Shastra Ke Mool Siddhant

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Rajeeti Shastra Ke Mool Siddhant by श्रीधर शर्मा - Shridhar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जानवारी के लिए विसी भी दस्तु को उपर फेंबने पर न|वे आते देखबर जान सकत हैं। इसी प्रवार रसायन शास्त्र मे प्रतिपाद्य विषयो का स्वरूप भी स्पष्ट, निश्चित व नियमित हैं अत लोहा, ग घक आदि पर परीक्षण करने उनके गुण, स्वरूप, प्रभाव आलि वा ज्ञोन प्राप्त कर सकते हैं । पर त्‌ राजनीति शास्त्र के द्वारा भ्रतिपांध विषय हतने भरप्ठ, जाटल अनियमित एवं विस्तृत हैं कि उनमे परीक्षण सम्भव नही है । एक देझ में लोकतन्न शासन प्रणाली सफल रहती है तो दूसरे मे श्रसपल सिद्ध होती है । उदाहरणाथ मारत मे प्रजातन्न की व्यवस्था चल रही हैँ परन्तु पाकिस्तान में वह सफल नही हो पाई है । वण्स्क मताधिकार द्वारा एक राज्य मे सुहृढ भर शक्तिशाली शासन की स्थापना हो जाती ह तो दूसर देश में इसी बारण ऐसे शासन वी स्थापना हो जाती हैं जो अवमभण्य भ्रथवा भ्रष्ट होता है इससे स्पष्ट है कि राज्नीति शास्त्र मे भौतिक शास्त्र वी भाँति परीक्षण सम्मव नहीं है । इसके कारश को आर एच एस भफ्ोसमेन के शब्दों मे हस प्रवार व्यक्त कर सकते हैं, “आप जीवन के उस भाग को जिसे राज्ञनीति कहा जाता ह श्रथवा सगठन के उस भग को जिसे राज्य कहा जांता हूँ, सनुष्य समाज के पेचीदे ढठाँचे से अलग करके समभने की भाशा नहीं पर सघते ।”1 इस तरह अ-य विज्ञातों की भांति इसमें परीक्षण सम्भव नही होने से इसे विज्ञान नही माना है। (4) परीक्षणों का मिश्चित पर णाम नहीं-राजनीति शारत्र मे परीक्षणो के परिणाम शुद्ध एव निम्चित नही होते है । भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, जक गणित भांदि विज्ञानों मे परिणाम निश्चित और शाश्वत होते हैं जवकि राजनीति शास्त्र पर यह बात श्यगू नहीं होती है। क्रांति मे रत्तपात ही हो यह बात भी अक्षरध्ष सत्य हही है। मारत ने बिना रबतपात के भी त्रात्ति करके खा दी और श्वातिपूण आददीलन द्वारा अपनी स्वत बता प्राप्त वी । इसी ररह अय न्यिमों के सम्बध में भी कह सबत हैं वि वे सभी स्थिति, समय और स्थानों पर निश्चित शाश्वत और नियमित हो ऐसा नही कहा जा सकता है। इसीलिए बई विद्वानों ने इसे विभान मानने मे आपत्ति प्रत्ट की है 1 विज्ञान षया है उपयु कत विवेचन से स्पष्ट है कि राजनीति शास्त्र को अनेक विद्वानों ने विज्ञान नही भाता है । पर तु गहराई रो यदि उनके द्वारा प्रस्तुत किये गये तकों पर विचार बरें तो स्पष्ट होगा कि उ'होंने विज्ञान शब्ल को ही उसके सही अथ में नहीं समझा । मिलिन तथा गिल्नि ने विचाय की परिभाषा देते हुए छिसा है, “जिस क्षेत्र वा हम अनुसघान करना चाहते हैं उसकी ओर एक निश्चित प्रवार वी पद्धति ही विज्ञान का वास्तविक चिह्ध हैं।”2 (2 रन- नी 7 मेक. ८ ० दे कब कर 4 ॥म सफर 1०-नपनर ल्‍जज पक लो लिकह कद तक सककनक 1 00 रशाप्रण 7७006 ॥ ॥816 51०6 ज॑ 116 ०३1०0 एगराध:5 ण 8 5४6 ० 0 ह्ग्योडआा।00 ८4109 06 814९8 170० 17012॥18 $४४0०४७०१९ ण॑ #एआब5 ३०टंट(ए बाएं 1076 10 एएक्‍8:क्षात 11] रे मर 8 एा०0%णथा (एण्णवव 99 0795ण19 कह एालत॒ल३ 9 कल [घा०वंएलात्त ४ एगाधद 920 2, १86 0०७ झंड7 ०॑ इ$लद्घ९ह 1$ & व्लॉगिंप 5० एा खफ॒छाठबट 1०एगएड 16 11०6 छा 1. छ6 शांध1 (0 19५6508416 >-9117 880 छाए 3




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