फूल खिले काँटों में | Phool Khile Kanton Men

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Phool Khile Kanton Men by मोहनलाल जैन - Mohanlal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पीड़ाओं का तेल डाल कर हम जलाते हैं दीप हँसी के। देदना के रबरों में हम गाते हैं गीत खुशी के। वे क्या समझेंगे हमको जो नहीं समझ सके अपने की ! ये कोदियों में घुट रहे हैं हम फुटपाथों पर जी रहे हैं अपनी मस्ती में।




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