पंखहीन तितली | Pankha Heen Titali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रही है ।” नरेंद्र ने पहलू बदलते हुए वह शंका व्यवद को जो उसे बड़ी देर से परेशान कर रही थी। भद्रसेन विचारमग्न हो गया। वह एक पल चुप रहा ओर फिर होंठों को ग्रोलाकार बनाकर बोला: “मकसद ?” “सिलवाड़- तफरीह ) मकसद और क्या होगा! इन बल्ट्रा मानते लड़के-लड़कियों के लिए पूरा जीवन ही खिलवाड़ और तफरीह है।” नरेंद्र ने श्षपनी बात इस ढंग से कही कि भद्रसेन खिलखिलताकर हंस पड़ा और नरेंद्र भी मुस्कराया। 'टनन-टसन ! / फोन की घटी हुई। नरेंद्र ने लपककर रिसीवर उठाया। मालूम हुआ कि नागपुर से कोई अयंश्ञास्त्री दिल्ली आया हुआ है और वह डा० त्याग- राज से भेंट का समय चाहता है। नरेंद्र ने उसे वता दिया कि इस समय डाबटर साहव आराम कर रहे हैं, वह कोई आध घंटे बाद दोवारा फोन करें। “देखो नरेंद्र ! मेरा एक सिद्धात है।” वह जब लौट भाया तो भद्रसे न ने बात शुरू की, और सिद्धात यह है कि सो के सौ व्यवितयों पर अविश्वास करने के बजाय किन्‍्ही दस से घोखा खा लेना कही अच्छा है।” “घोखा तो खंर वह क्या देगी ? मैंने तो यों ही अपना **'”” अनुमान! घब्द नरेंद्र के गले में अटक गया वयोकि भद्वसेन ने पहले ही कहा या कि अनुमान से मनुष्य भ्रम मे पड सकता है। “दूसरी बात 1” भद्रत्तेन फिर बोला, “मैं जब मधु देखता हूं तो सौंदय की कल्पना करता हू ओर जब सोन्‍्दर्य देखता हू तो मधु दी ॥ मथु का यह गुण है कि वह कभी सडता नही; बल्कि दूसरी चोजो को सड़ने से रोकता है। आयुर्वेद वाले मघु के इस गुण को जानते हैं और उसका प्रयोग करते हैं। अब ऐलोप॑थी वाले मघु को जगह अलकोहल इस्तेमाल करते हैं।'” »डाबटर महोदय ! मधु और अलकोहल मे जो अंतर है, जरा उसकी भी कल्पना कौजिए 17 इस बार नरेंद्र खिलखिलाकर हंता और भद्वसेन मुस्केराया। भाव यह पंखद्वात तितली / २५




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