मोक्षशास्त्र | Mokshashastra And Tatwarthsutra

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Mokshashastra And Tatwarthsutra by रामजी माणेकचंद दोशी - Ramji Manekachand Doshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनुवादककी ओरसे इस युगके परम आध्यात्मिक संत-पुरुष श्री कानजीस्वामीसे जेन-स्माजका बहुमाग सुपरिचित हो चुका है । अल्पकालमें ही उनके द्वारा जो सत्‌-साहित्य-सेवा, आध्यात्मिकताका प्रचार और सदमावोंका प्रसार हुआ है, वह गत सैकड़ों वर्षों में सी शायद किसी अन्य जैन सन्त-पुरुषसे हुआ हो ! मुझे श्री कानजीस्वामीके निकट बेठकरु कईबार उनके प्रवचन सुनवेका सौभाग्य प्राप्त हुमा है । वे 'आध्यात्मिक' और गनिश्चय-व्यवहार' जैसे शुष्क विषयोंमें भी ऐसा सरसता उत्पन्न कर देते है कि श्रोतागण घन्ठों क्या, महीनों तक निरन्चर उनके त्रिकाल प्रवचन सुनते रहते हैं । और श्ौताओंकी जिज्ञासात्मक रुचि बराबर बनी रहती है। उनके निकट बैठकर अनेक महानुभावोंने ज्ञान-छाभ लिया है और आत्मार्थी विद्वान श्री पं० हिमतछाल जे० शाहने श्री समयसार, प्रवचनुसार, आदि अनेक ग्रन्थोंका गुजराती अनुवाद किया है, जिनका राष्ट्रभाषानुवाद करनेका सौभाग्य मुझे मिला है। स्वामीजी के अत्यन्त निकटस्थ एवं आध्यात्ममर्मज्ञ वयोदृद्ध विद्वान्‌ श्री रामजीभाई दोशी मे मोक्षशासत्र ग्रन्थके टीका-संग्रह का ,परोपकारी कायें किया है । ग्रुजराती पाठकोंमें यह टीकाझासत्र अत्यधिक लोकप्रिय सिद्ध हुआ है । मैंने स्वयं भी पयू षण पंवेमे ललितपुर की जैन-समाजके समक्ष उसी ग्रुजराती भाष्यको २-३ वार हिन्दीमें पढ़कर विवेचन किया, जो समाजको बहुत ही रुचिकर प्रत्तीत हुआ। | उसी भाष्य-प्रन्थका राष्ट्रभाषा-हिन्दीमें अनुवाद करनेका सौभाग्य भी मुझे; ही प्राप्त हुआ है, जो आपके करकमलोंमे प्रस्तुत है |; मेरा विश्वास है कि सामान्य हिन्दी पाठक भी इस 'तत्त्वार्थ-विवेचन!' का पठन-मनन करके तत्त्वार्थंका रहस्यज्ञ बन सकता है । हिन्दी जगतमें इस ग्रन्यका अधिकाधिक प्रचार होगा, ऐसा मेरा विश्वास है। जैनेन्द्र प्रेस, ललितपुर । _् २४५-७-५४ -- -“परमंप्ठीदार बेन,




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