महिला गौरव | Mahila Gaurav

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Mahila Gaurav by वृन्दावन शास्त्री - Vrindavan Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यशाधर अपविद्र दो गई । मांत और मद्य की प्रबलता, यज्ञों में माँस का प्रवेश, व्णाश्रम-व्यवस्था फी परथ-भ्रष्ट रूढ़ि, और निन्न शेणी फे लोगों पर अत्याचार से तथा तपस्या आदि फे विपरीत मार्ग पर चने से भारत फा उचच-ऐरव भूमिसात्‌ सा दो गया। अपदू प्राह्य्ों फी खूब चलने लगी । चारों ओर अशान्ति फा साम्राज्य छा गया। ऐसे समय में इस भूमि पर एक ऐसे भद्दात्मा का जन्‍म हुशझा, जिसने बड़े द्ोकर भारत फी फायापलट फर दी | इसका नाम था सिद्धार्थ जो फालान्तर में गौतम बुद्ध के नाम से प्राणिमात्र का शिरोमणि यना। सिद्धाथे फे पिता शुद्धोदन, द्विमालय की तराई में स्थित फपिलवस्तु नाम की नगरी फे अधीश थे। प्रजा उन्हें सन्‍्ततिवत्‌ प्रिय थी । पुत्र सिद्धाथे पर उन्हें अतीव स्नेह था। युवराज्ञ सिद्धाये कब्र राज-काज्ञ संभाले,उन्‍्हें सदा यददी ध्यान रहता था। पर सिद्धाये फी आत्मा क्रिसी दूसरी द्वी ओर लगी हुई थी । उस स्वभावतः बीतराग प्राणी के नेत्र बाध्य संसृतति में आते जीवों को फरुणाभरी चित्रपटी देखने में तल्लीन थे और हृदय उनफे फष्ट से द्रवित होकर रो रद्द था । उन्हें पिता द्वारा प्रस्तुत किये गए आमोद-प्रमोद से तनिफ भी लगाव म द्ोता था। होते होते पिता ने पुत्र फो विवाह-बन्धन में बांधने फी ठानी। विधा फी चर्चा चली । देश-देशान्तरों में दूत भेजे गए। अनेक राज्ञा-पद्दाराज्ा अपनी अपनी सुरूपा फन्‍याओं झो साथ लेफर फपिलवस्तु में आ उपस्थित हुए । प्रत्येक के मन में यही अमिलापा थी फि उसी छी फन्‍्या स्वीकार फो ज्ञाय। अपने मन फे अनुरूप ऋन्‍्या का चुनाव फरने का पूर्ण अधिकार सिद्धाथे छो दिया गया । २७ +




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