तरुण - भारत - ग्रंथावली दिल्ली अथवा इन्द्रप्रस्थ | Tarun - Bharat - Granthawali Delhi Athava Indraprasth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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* पंहरों भ्करण। , ५७ “जे है। किलेमे एक बढा बाग है, जिसमें बादुशाहके रहनेके महरू तथा उसका जनानखाना है । इन इमारतोंको छोडकर बाकी स्थान देखनेकी जिन्हें इच्छा हो, वे वहॉकी आज्ञा लेकर उनको देख सकते है। शहरके रास्ते अच्छे है, ओर उनके दोनों ओर उत्तम इमारतें बनी हई “है । बहा अनेकों जातिके व्यापारी रहते है, और उनका व्यापार भी - खूब चलता है। शहरसे जमनाकी नहर वह रही है । उसपर कहीं कहीं घाट चैंधे हैं, ओर इधरसे उच्रर जानेंके लिए थोंडे थोंडे अन्तर पर पुल बने हैं । इस सारी शोमाका अवलोकन कर मनुष्य चकित हो जाता हैं। आहरमें अनेक प्रकारकी तारकशी और नक्काशीकी कई अच्छी अच्छी “चीजें मिलती है। शहरमें जुम्मा मसजिद नामका मुख्य स्थान है । इस स्थानपर जानेंके लिए हिन्दुओंकों मनाही है। मसजिद्‌के बाहर साय- कालको उत्तम प्रकारंके कपडोंका व्यापार होता है, और अनेक प्रकारके पक्षी बिकनेके लिए आते है । वहाँ चॉदनी चौक नामक एक स्थान है, जहाँ जवाहिरोंका सोदा होता है | श्हस्में प्रायः मुसठमान ही अधिक हैं। प़िर्फ किछेम ही बादशाह की हुकूमत उस समय चलती थी, ओर “बादशाहके द्वारा नियुक्त किये गये कर्म्मचारी वहोँके झगडोका निबटेरा किया करते थे ।” इस वर्णनसे जान पढता है कि, वहादुरशाहऊ़े जशने तक दिल्ली शहरका व्यापार ओर वैभय पूर्णरूपसे नष्ट नहीं हो पाया था, किन्तु योढाबहुत अवश्य कायम था । कम्पनी-सरकारने दिललीपर अपना अविकार जमाकर बहाँके बाद- - शाहकी अपने अधीन कर छिया था, तथापि चादशाहकी इज्त और प्रतिधामें उसने कुछ भी न्यूनता नहीं होने दी थी। सारे हिन्दुस्थानका राज्य- प्रबन्ध दिलीके बादशाह बहादुरशाहके मातहत रहकर किया जाता था। इस घादशाहका बढप्पन केसा रखा गया था-इसका वर्णन एक गन्‍्य< काने बहुतदी अच्छा किया है। वह कहता है --- *




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