पाप का बाप कौन एवं अन्य कथाएँ | Pap Ka Bap Kaun Aur Anya Kathaen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ जजाल करने पडे। थोड़े दिनों मे तो महात्मा एक पूरे गशहस्थी के समान ही बन गये साथ ही जसे-जसे उनकी कुटिया में एक- एक चीज की वृद्धि होती गयी, वेसे-वेसे उनकी चिन्ताएँ बढती गयी और उतने अ्रणों मे जीवन का आ्रानन्द कम होता गया। कुछ दिनो बाद वे दूसरे महात्मा उनकी कुटिया मे आये, जव यह सव आडम्वर देखा तो चकित हो गये । जब उन्हे सारा हाल मालूम हुआ तो बोले, “वह कहाँ है गीता, उसे इसी समय जला डाल ।” परन्तु अब क्या हो सकता था। वे तो पूरे जजाल मे बेँध चुके थे । उपदेण देने से पूर्व पात्र की योग्यता अथवा अयोग्यता का विचार अवद्य करना चाहिए । १४--ब्द ए क्‍ज दुप्पॉरिणाम एक दरिद्र ब्राह्मण था | अपनी दरिद्रता को दूर करने के लिये उसने वरूण देवता की उपासना की। वरूण ने प्रसन्न होकर ब्राह्मण को एक बडा णख दिया और साथ ही कहा कि जो कुछ ब्राह्मण अपने लिये मागेगा उसका दुगना प्रत्येक पडोसी को स्वत ही प्राप्त हो जायेगा । ऐसे वरदान को पाकर प्रसन्न होने की बजाय ब्राह्मण वहुत दु खी हुआ । उसने शंख को ताये में बन्द करके रस दिया। वह नही चाहता था कि किसी भी पडोंसी को थोडा भी लाभ मिले। ब्राह्मण की स्त्री ने पति को समझाया, हमे भगवान को दया से ऐसा वरदान भी मिला फिर भी हम पहले ही की तरह दुखी और कंगाल है । यदि पडोसी को लाभ होता है तो होने दीजिये, हमारे दुख तो दूर होगे ।” परन्त ण जियाक




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