ऋणजल धनजल | Rinajal Dhanajal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कणीश्वरनाथ रेणु - Kanishvaranath Renu
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्यास की नेरेटिव' परम्परा को मिशझोड़ कर उसे प्रेमचन्दीय ढाँचे से
बाहर निकाल कर इतना नाठकीय, इतना लचीला, इतना काव्यात्मक
बनाया था जितना रेणू ने झौर यह नोटकीयता, यह कविता झलंकारमय
भोर कृत्रिम नहीं थी, क्योंकि परम्पराग्रस्त किसान और भाधुनिक ऐति-
हासिक आन्दोलन के बीच जिस मुठभेड को रेणु ने प्रपना विषय बनाया
था उसमे पहले से ही बारूदी नाटकीय विद्यमान ये। उनमें सिर्फ दिया.
सलाई लगाने की देर थी।
रेणु ने जिस तोली से किसान के उदास, घूल-धूसरित क्षितिज में
छिपी नाटकोयता को झालोकित किया था उसी त्तीली से हिन्दी के
परम्परागत यथारथवादी उपन्यास के ढाँचे को भी एकाएक ढहा दिया था।
मेरे विचार में यह रेणु की प्रविस्मरणीय देन श्ौर उपलब्धि है। मंला
ग्रांचल प्लौर परती परिकथा महज उत्कृष्ट भ्रांचलिक उपन्यास नहीं हैं, थे
मारतोय साहित्य में पहले उपन्यास हैं जिन्होंने अपने जमित ढंग से,
मिभकते हुए भारतीय उपन्यास को एक नयी दिशा दिखायों थी, जो
यपायँवादी उपन्यास के ढाँचे से बिल्कुल भिन्न थी। उन्होंने उपस्यास्त की
नैरेटिव, कथ्यात्मक परम्परा को तोड़ा था---उसे पलग-प्रलग 'एपीसोड' में
बाँटा था, जिन्हें जोडनेवाला धागा कथा का सूत्र नहीं, परिवेश का ऐसा
लेडस्केप या जो प्पनी प्रात्यम्तिक लय में उपन्यास को रूप और फॉर्म देता
है। रेणुजी के यहाँ समय में वंधी घटनाएँ नही, ऊबडखाबंड ज़िन्दग्रियो
की यह लग, यह स्पंदन उपन्यास के हिस्सो को एक-दूसरे से जोडता है।
रेणुजी पहले कथाकार ये जिन्होंने भारतीय उपन्यास की जातीय
सम्भावनाग्रों की तलाश की थी; शायद सजग रूप से कही, शिल्प झीर
सिद्धान्त के स्तर पर तो भवश्य ही नही, बल्कि एक ऐसे रचनात्मक स्तर
पर जहाँ शिम्दगी का कच्चा माल स्वय कलाकार के हाथो अपने प्राण, जो
कॉम का दूसरा काम है, खीच लेता है, ताकि वह एक नये खुले, मुक्त ढाचि
में साँस ले सके | फोम की झसली उपलब्धि इसी प्राणवत्ता मे निहित है ---
बाकी सब प्रश्न तकनीकी भौर शिल्प के हैं । झ्ालोचक की बहुस का विपय
ज़रूर हों, कधाकार का उनसे कोई नाता नही |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...