रचना - मयंक | Rachana Mayank

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Rachana Mayank by पाठक विद्यालंकार विशारद - Pathak Vidyalankar Visharad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्वितीय परिच्छेद ] उदु-भाषा 4३ सदासुख हूँ। उनके याद भी कुछ गय-लेखक और उन्तकी रचनाएं मिलती हैं. परन्तु छल्लूठालजी के समय से इसका घिकास प्राय्भ होता है। उनका लिखा प्रेमलागर आगरे के भिकट बोली जानेबाली भाषा में लिखा गया है जिसमें ध्जमापा को पृथकता और खड़ी-चोली के प्रादुभोव का चित्र स्पष्ट दिखाई पड़ता है | अतः हिन्दीगय के जन्मदाता होने का अधिक धेय लल्त्ूूलाठजी को ही है। उसके बाद गद्य, की भाषा में उर्दू के शब्दों का पुर मिलाना शुरू हुआ। राजा शिवप्रसाद्‌ सिंतारेहिन्द्‌ फी खड़ी-वोली में अस्वी-फ़ास्सी फे शब्द्‌ बहुतायत से प्रयुक्त हुए हैं। परन्तु राजा रूध्ष्मणरलिद्द की गद्यरचना विशुद्ध हिन्दी में है। इसके वाद भासतेन्दु दरिश्रिन्द्र से हिन्दी-गद्य की अधिक परिष्छत कर दिया। आजकल छिखे जानेवाले हिन्दी-गद्य की इनके समय में बड़ी उन्नति हुई। पद्चात्‌ प्रतापनाराषण मिश्र, बाढूमुकुन्द गुम, मद्दावीस्मसाद द्विवेदी आदि भहांतुभाषों की लेखनी से हविन्दी-गथ की काया दी पलट गयी और आज पद्य-विभाग से गद्य-विभाग का ही अधिक विफास हो रहा है। विद्वानों का कहना दे कि खड़ी-बोली का प्रादुर्भाव मेरठ और, उसके आसपास बोली ज्ञानिवाली भाषा से हुआ है। उदू-भाषा कुछ लोगों का कहना है कि उर्दू एक अलग भाषा है। जो फ़ारसी या अरबी से निकली है। परन्तु इसकी उत्पत्ति के विपय में विचार करने से तो यही पता चढता दे कि ड़ का उद्गम कोई विदेशी-भाषा नहीं है । हमारे विचार से उर्दू द्विन्दी




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