सर्वोदय | Sarvoday

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Sarvoday by गाँधीजी - Gandhiji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्पादकका मिवेदन “ोगोकी तरफसे जोरदार माग होनेके कारण नवजीवन प्रकाशन मदिरने १९५१ से 'सर्वोदिय उसके सिद्धान्त और कार्यक्रम” नामक एक छोटीसी पुस्तिका प्रकाशित की थी। उसका मुख्य उद्देश्य कुछ ही पृष्ठोमे सर्वोदिय समाजके सिद्धान्तों और कार्यक्रमके बारेमें जानकारी देना था। गाधीजीके निधनके पश्चात्‌ उनके अनुयायियोने यह अ्रातृमडल वर्धामें शुरू किया था। वर्तमान पुस्तकमे सर्वोदिय अथवा सबके कल्याणकी चर्चा की गई है और यह बताया गया है कि वह कैसे सिद्ध किया जा सकता हठें। गाधीजीके मतानुसार सर्वोदियका अर्थ आदर्श समाज-व्यवस्था है। इसका आधार सर्वेब्यापी प्रेम है। इसलिए इसमे निरफप्वाद रूपसे राजा और रक, हिन्दू और मुसलमान, छुत और अछुत, काले और गोरे, सन्‍त और पापी सबके लिए स्थान है। किसी भी व्यक्ति या समूहका दमन, द्योषण या विनाश नहीं किया जायगा। इस समाज-व्यवस्थामे सब बराबरके सदस्य होगे, सबको उनकी मेहनतकी पैदावारमे हिस्सा मिलेगा, बलवान दुर्बंडोकी रक्षा करेंगे और उनके ट्स्टीका काम करेगे तथा प्रत्येक सदस्य सबके कल्याणका ध्यान रखेगा। चुकि प्रेमका एक मुख्य लक्षण प्रेमपात्रके खातिर आत्म-समर्पण करना सर्वस्व दे देना या मर मिठना है, इसलिए सर्वोदयकी सिद्धिके लिए संयम और कथष्ठ-सहन एक मुख्य छ्ते है। भारतमें सदियोसे त्याग और कठोर आत्म-सयमकी परपरा चली आई है, इसलिए वह सर्वो- दयके लिए सबसे अनुकूल भूमि है। इसके ठीक विपरीत पाइरचात्य देशोमे आराम, आवश्यकताओकी वृद्धि और भोग-विलासका मोह है। ्‌




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