सोहम् | Soham

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Soham by विद्यानिवास मिश्र - Vidya Niwas Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वर्णन का प्रसंग प्रस्तुत किया जाना तथा लव के द्वारा संयोग-कऋषगार का सूक्ष्मे- सकेत करने वाला श्लोक उद्धृत किया जाना भी अनुचित प्रतीत होता है । इसी ऋखला में एक दोप और दीखता हैं जनक जैसे राजाषि अपना स्थितप्रज्रूप छोड़ कर सीता के त्याग से इतने विज्लल हो उठते हैं कि राम को शाप देने के लिए उद्यत हो उठते है यह बात उनके जैसे ज्ञानी को शोभा नही ही देती । आलोचको की दृष्टि मे पदवाक्य प्रमाण-तत्वज्ञ भवभूति को भी शोभा नही देती कि वे राजघि जनक को ऐसे विकृतरूप मे चित्रित करे । कुछ आलोचकों को करुण का वार-वार प्रथन (काव्यशास्त्र की भाषा में दीप्ति) बहुत अस्वाभाविक और रसपरिपाक मे बाघक दीखता है । यह कुछ अति- रिक्त और कुत्रिम भी लगता है कि राम बार-बार मू्धित होते है ओर सीता के स्पर्श से संजीवित्त होकर आनंद-पुलकित होने लगते हैं । ऐसे आलोचको की दृष्टि मे पष्टिवमी नाट्यशास्त्र की तीनों अन्वितियो का संग भी एक दोष दिखता है। बारह वर्षें के व्यवधान से नाटक की घटनाए घटती है इससे कालअन्विति भंग होती है । अयोध्या पचबटी भौर पुन वाल्मीकि भाश्रम मे घटनाएं घटती हैं । इससे देश-अन्विति भग होती है और इतने प्रकार के कार्यों से संकुल होने के कारण (अभिषेक जामाता का यज्ञ सीता-त्याग शम्दूकवध वासंती - प्रसंग अश्वमेध युद्ध और वात्मीकि आश्रम के नाटक के बाद मिलन) कार्य -अस्विति भग होर्ती है । अधिक-से-अधिक उनकी दृष्दि मे यह नाटक एक दार्शनिक कवि की मौलिक काव्यमय उद्झावना है जो वाल्मीकि कालिदास भौर बाण तीनो के आत्मसात्‌ू करने के कारण सस्कृत-सा हित्य मे अपना एक विशिष्ट स्थान बनाती हैं । सही वात यह है कि गहराई से उत्तररामचरितमू की परीक्षा नहीं की गई है। सबसे पहले इसी दृष्टि से विचार करना चाहिए कि इस नाटक में अज्धी रस करुण का आदि से अत तक निर्वाह किस प्रकार हुआ है और किस प्रकार घटना- क्रम समस्त पात्र और अन्य रसो के परिपाक इसमे सहायक है। भारतीय नाट्य- सिद्धांत तीन अन्वितियों पर आधारित नही है । वह रसनिष्पत्ति को केंद्र मे रखता है । वस्तु और नेता को उसके आगे गोण मानता है । यही कारण है कि पाश्चात्य दृष्टि से भारतीय नाटकों के पात्र टाइप जैसे दीखते है जिसमे कुछ गुण पु्वे- निश्चित लगते हैं। परपरावादी टीकाकार भी करुणरस की अगिता का दूसरा उदाहरण न देख पाने के कारण करुणरस की नाटक से निष्पत्ति का कोई निगस- नात्मक सिद्धांत नही बना पाये और इसीलिए उत्त ररामचरितम्‌ की व्याख्या करने मे उन्होंने रस-दृष्टि को ओझल करके सीता से पुनर्मिलनरूपी फल-प्राप्ति को ही ध्येय बनाते हुए नाटक री. #. यो की (मुख-प्रतिमुख गर्भ-विमर्श ओर निर्वेहण की) व्याख्या एन से देखने पर वह व्याख्या शुद्ध नहीं घारणा भवभूति के परिप्रेक्ष्य में / पर




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