वास्तुसार प्रकरण | Vastusar Prakaran

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Vastusar Prakaran by भगवानदास जैन - Bhagwandas Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जैन विविध ग्रंथमाला में छपी हुई पुस्तकें-- १ मेघमदोदय-वर्षप्रबोभ--(मद्दामहोपाल्‍्याद भी सेडशिमष रस्सी विरक्तित) बर्य डढैसा होगा, सुझछ पडेसा या हुप्कघक्ष बपोंद कब ओर कितनी बरसेसी, अवाज रई, कपास सोसा चांदी भावि घस्तुर्य प्रस्ती रहेंगी बा सईगी इत्डादि मारी ह्यमाद्यम पत्तिशित खाने कर पह झपूर्य प्रंथ दे । काशी रादि के पद्चोग छक्तों राज्प क्पोतिफितों से मी इस प्रेप का प्रसाछझेक सासकर धापये पश्चांगों में इस संत पर से रफ़देश प्िल् रहे हें। पत्फयं मक्ष भंप ३५. रशाड़ पमाझर के साथ भाषाश्तर मी खिक्षा सदा है, डिसे समस्त अषता इसी से प्लाम ले सकती हैं । कीमत चार रुपया । मे ओइस दीर---मूच प्रहृत गावा के प्राप दिल्दी साद/स्‍्तर छपा है बह स्मर्त प्रकार से सु हप्ले के सिपे ध्रपूरे प्रंथ है। सूरप पांच झागा। इ वास्सुसाए-प्रकरय सचिजर--(म्कर 'फेक” विरद्चित) सूख और गुझराठी झाषास्‍्तर समेत #प रहा है । प्रकत तीम सास सें दाहर षढेगा । किम्रत पांच रुपया । शीघ्र ही प्रकाशित होने वाले अप-- ६ रूपसइल सचिज--(सूजघार 'संडन घिरा्त) सूछ दौर साषात्तर श्रमेत | इप्र्से वि्यु के ३९ महद्दारेद के ११ इशावठार, अक्षा गणएति, एक्‍्ड सैरब, सहवी दुर्गा पार्वती ध्यदि समरत दिस्दु्भा के लगा कैब देव देदियों के भिन्न १ स्वकर्पो का बर्जेज चित्रों के साथ भच्छी तरइ छिखा गया दे । २ प्रासाद मंडस- (सूजचार 'संडल! विशश्त)अड़ झौई श्मापास्तर समंठ । मदिर सम्बन्धी बसेग अगक शकरे के साथ बतहाषा है। ॥ जम दशेग खिावक्षी--चपवुर कजप्निय दिजकार के इाप॑ से सबोहर कक्षम प्ले बने हुए, अष्ट महाप्रातिह्वार धुक्त १६४ तौधकर्री तथा रुमडे दोनों तरफ दशपकात देह छरर देदी के चित्र हें। ४ गकछितसाए संप्रद--(कच्दे थ्रो मद्ाद्रराआर्य) गणित िषण । 2 बैशोक्प प्रकोश--(सबह प्रतिशा औी देमप्शसूरि विराधित) छातक विदन । ९ बेडा आतक-- (गरर्डशोप्रष्पपण विरश्ित) छातक विदच । 1७ भुबत बीपक सटीक--मुझकच् पर्प्रमसृरे सैर रीकफझाप प्रिंदतिश्षक्सूरि है। इसमें पृक अश् कुंडली पर मरे १४४ 7 कर डचर देखा छाठा है । को सहाश्तप प्‌ऊ इुपया लेजकर रपाई प्राहक बनेंगे डहफो कैम दिवेश प्रंणसाकय कौ हरप्क चुख्दक दोजी किमत से मिदेपि । माप्ती स्पान--+ |. ० भगवानदास जैन संपादक- फेन यिविध प्रंपमाक्षा, भोदीसिंद भोमिषा का रास्ता, जपपुर सिदी ( राजपूताज )-




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