मेघमहोदय - वर्षप्रबोध | Meghamahoday Varshaprabhodh

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Meghamahoday Varshaprabhodh  by भगवानदास जैन - Bhagwandas Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१४ ) मेत्रपह्टा दे निहिमते ज॑ सेसे, तमकसारेण गणिय जो देरी | संबब्दरराघाओ, आरबर्न दसाक्ष्मे माया ॥९१॥ जो जंको ज॑ देसे, षोधम्वी देस्मामनगरस्स | आइच्ाइगहागां, फलू य पणति गीयत्था ॥९२॥ ज॑ जम्मि देसनयरे, गएसे ठाणे वि नत्थि रूल धुवों । ते नामेण य रिकख॑, रुदक करिय तम्मिस्स ॥६९१॥ निहिमते ज॑ सेरं, धृदग यिय देखनयरगासायणं । झुलद्साक्षमगणियं, एकुत्तकप्सं दियाणाहि ॥९२४॥ मेहबुट्टी अणछुट्री, सपरचक्क च रोगमय । अन्नसुपत्ती नांसखो, राधाक्ट चझुद्द व ॥९०॥ संबच्छररायाओ, गणियध्व देसी [स ?] कमेण फल । आशचाब्ग्गह्णं, खुहाखुद जाणए कुरुले ॥६६॥ कर नवका भाग देना, जो शेष बच वह वर्जमान सवस्सर के राजासे वि- शोत्तरीदशा क्रम से गिनकर फल कहना ॥६ १॥ जो जो झक जिस जिस देश मे हैं वे देश गाव नंगर के अक जानना । इनसे विद्वानों ने रवि आदि ग्रहों का फल कहा है ॥६ २॥ जो जो देश नगर गाव या स्थान का बल प्रयाक न हो तो उनके दिशा के १४५ आदि मूल अक, वर्ग के राजाका विशोत्तरी हा का. सूलपर्षोक, शनि जिस नक्षत्र पर हो उस नक्षत्र ते गाव के नक्षत्र तक के अक और दिशा के अक ये सव इकट्ठे कर बारह से गुणा करना, पीछे उसमे नवक्ां भाग देना, शेष रहे उस्त गह के झत़ुभार देश नगर गाव का मूल दशाक्मा से फल कहना ॥६ ३, ६४ मेबदृष्टि , अनाशषटि, स्पचक और परचक का मय, रोगसय, अेंशोर्न की उत्पचि तथा विनाश, राजफ०, सेना में उपद्व ये सब्र सवरत्त के राजा से देशक्रम से पूर्व आदि प्हों का शुभाश्ठुम फल को दर पुरुष जनि ॥ 8 ५, ४६ ॥




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