श्री संघ पट्टक | Shrisanghpattak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ हरि दामोदर वेलणकर गुम्फित “ ज्ञिनर्त्नक्ोण ” में हुआ है। इत्तियों में सर्वश्रेष्ठ व प्राचीव बुइल्ृत्ति ” है, जिसका प्रणयन भश्रकाण्ड पंडित और शाख्रार्थी श्रीज्नपति- सेरिजी मे, द्वारा हुआ। यह दृत्ति क्या है ? एक प्रकार से महाभाष्य है | इस में आचाये महाराजने अपने सेद्धान्तिक ज्ञानवरू से तर्कयुक्त शैली में, सुन्दर रूप से मूछ अन्थगत विषय का समथन किया है। प्रस्तुत संस्करण तैयार करने में निम्न हस्तलिखित प्रतियों का उपयोग किया है, जिन का परिचय इस प्रकार है--- प्रति परिचय--- (१) 29 संघपइक-अबरचूरि, साधुकीरति गणि रचित, रचनाकाल सं. १६१९ | यह “प्रति ” घ्रुनि कान्तिसागरजी के विजी संग्रह की है | पत्र ६, त्रिपाठ, जिप्त का चित्र इस ग्रन्थ में दिया जा रहा है । इस की लेखन प्रशस्ति इस प्रकार है-- & हुं, १८५३ वर्ष कार्चिक कृष्णपक्षे पश्चम्यां कर्म्मवात्यां ॥1प.॥ मीमविजय प्ुनिना लिलेखि श्री फलवर््धिकायां चतुर्मासी चक्रे ॥ श्रीरस्तु ॥ 8 संघपट्ूक-अव चूरि, यह “ प्रति” बाबू पूर्णचंदजी नाहर के संग्रह से उनके खुयोग्य-पुत्र राष्रसेवी श्री विजससिंहजी नाहर की उदारता से प्राप्त हुईं थीं। वि. सं. २००३-४७ के हमारे कलकत्ता चतुर्मास के सयय इस की प्रतिलिपि करली गयी थी । प्रति छुदर सुवाच्य व प्रायः छुद्ध है । (२१) 5» संघपइक-दीका, कचो, लक्ष्मीसेन, रचनाकार से, १५१३, इसकी “ प्रति ” हमें रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ बेंगाल के १ प्रकाहझक; श्रावक् जेठालाल दल्सुख, अप्रदावाद, स, १९६३, वरहतद्ृत्ति का यह भाषान्तर पठनीय ह और श्राज़ की स्थिति को देखते हुए विचारणीय मी। > आचार्य महाराज न फेचछ स्वर्य अद्वितीय प्रतिभासम्पन्न विद्व.न्‌ दी ये अवितु बिदृ॒त्यरम्परा के निर्माता भो थे। आप के अधिकतर शिष्य उच्चकोटि के अन्ध रचयिता व प्रखर पाण्डिल्यपूणे विचारपरम्परा के स्ठा थे।




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