लघु - सिद्धान्त - कौमुदी पूर्वार्धरूप भाग - 1 | Laghu - Siddhant - Kaumudi Purvardharup Bhag
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
59 MB
कुल पष्ठ :
684
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ८ )
संस्कृंतटीकामपि.. कं मस्वम्मूष्तुरासीत; तथापि स्वसाधारणानां हिन्वीं-
मांपाभिज्ञानों च लाभस्तंथा म भवितुमंहेति, यथा हिन्दीटॉकय[--इति बिविच्य स
हिन्दीटीकोमकॉर्चीत । संस्कृतटीकायां कदांचित् प्रसेतुरज्ञान गुप्तीमवतिं; परमतन्र
तथा मास्ति । अद्यत्ये हिम्दीटीकैब ज्ञानस्थ मिंकषोउरित। एतदसिप्रेत्यैव प्रस्षेत्रा
हिन्दीटीकायामध्यवसितम् । सा च बहुमूल्यापि तेन एतज्जिज्ञासुभ्यो ल्पमूल्येन स्वयं
है।लि सोढ॑वाषि दीयेतें। इदानीमदसीय><पू्वार्शाइमुना प्रकाश्यते। उत्तराद्धे><
पुंन॑>प्रकोर्येत । ततश्च 'सिंद्धान्तकौमृंया:ः अपि ईहृश्येष टीका पाठकेभ्य:
समप्येत ।
टीकाया आलोचना प्रंयोजनीयलों नापेज्षते ! हर्य स्तयं स्वपरिचायिका वरी-
वत्ति | विदुषो लेखकस्यात्र महान् परिश्रम>< प्रत्यक्ष एब। महती सुगमता, सुस्पष्टता,
विशदता चात्र वज्त त्ति। शब्वामामुच्चारणानि कार्त्स््येन लिखितानि। सूत्रार्था:
सम्यक् प्रस्फोटिता: | शब्देषु ब्याक्रिया-्क्रिया वेशय्रेनाह्लनिता । शब्दान्तराणां
सुंची अपि निर्दिष्टा; येंन अनुवादेषि महिष्ठो लाभ आशास्येत। विशिष्टबिषया
अपि सम्यक् सन्हृब्धा:; येन ज्ञानवद्धिस्तत्पिपासा च विशद॑ं जागयात्। शअहं
लेखकमाशिषा युनज्मि यदू--यत् सदुद्देश्यमभिसन्धाय तेनेदं प्रशयनं कृतम, तरय
साफलय॑ तस्य भूयाद् भूयात् ।
भाद्र पद॑शुक्ला इति हृदा श्राशालान:--
२ बुधे सं० २००३ बै० दीनानांथशर्मा शास्त्री सारस्वत: ।
[विद्यावगीश:, विंधानिधिः, विद्याभूषण:,
प्रिंसिपल स० घ० संस्कंतकांलेज
मुल्नतान सिटी ]
दिनननकममक >न्मन-न-- ५ सरााशकाक लमाथननाक
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