प्रश्न प्रति प्रश्न | Prashan Prati Prashan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परना कठिन है. ऐसी स्थिति में कवि का दायित्व वया है ?े क्या वह कवि सम्मेलना वे. श्रोवराप्रो के लिए कविता लिखे भ्रथवा युग बोव तथा झपने झास पास के मातव के दुस दद वी काव्य गुणा युक्त रचना का सजन करे कवि सम्मेलनो में जनता वी मानसिकता चुटकले या सामाय रचना सुनते की क्यो है? यहा रुचि का सवाल पुन सामने है मरे विचार से जन रुचि का समभना पठिन जरूर ह लेन भ्रसभव नही है सामायतया यह माना जा सकता है कि इस मॉन्सिक्ता या रचि के पीछे श्रोता की एक सहज होने वा भाव हो सकता है वह पहले ही चितायुक्त है और एवं बोभिल जिदगी जी रहा है ऐसी स्थिति म वह सहज होना चाहता है मत मस्तिष्क. पर स दबाव हटा कर वह थोडा आनादत हो लेना चाहता हैं प्रौर उसे सहजता था सामायीकरण अपने परिवेश को पहचान वर या युग फ्रे' दुख दद म साभीदार बन कर भी हो सकते हैं. उविता जीवन का प्रग है रचनाकार प्रपती मन स्थिति वो कविता यो रचना ही बरेगा यदि वह ऐसा नहीं करता है ता श्रपने दायित्व से भटक जाता है अपने भृजनक्म से चूक जाता है. उसे युगीन परिवेश की रचना करते रहना चाहिये श्रौर जनता के एक बडे भ्रग को भागीदार बनान के लिए प्रयत्नरत रहना चाहिए उसकी बविता का दत्तचित होकर नहों सुना जान पर हताश होन बी भ्रावश्यफ्ता नहीं है. बस्तुत ऐसी गभीर झौर छदयुक्त कविताओं के रचनाकार का कविसस्सेलनो बा मोह भी त्यामना चाहिए उसे ऐसो कविताएं समीप्ठिया भें सुनान रहना चाहिए शोर धीर-घोर क्षेत्र विस्तार करने वी श्रावश्यक्ता है उह फविसम्भलना वी दुण्ति के लिए जिम्मेदार हास्य व चुटकुतेबाज बवियों को प्रार्मा चत नही बरना चाहिये यह द्वाइ तो हागा हो झौर सपप स हताश होन या हवा में मुदर मारन वी झवश्यक्ता नही ह॒ नोटबी का जमाना जा रहा ह रवियो भ्रौर टी वी के इस सुगम सानव वी सवेदनाप्ना को सुरक्षित रफना है ग्रत नये माय तलाणना प्रावश्यवः है ग्रभीर बौद्धिक थ झत्तुझात कविताम्मा को सुनना व सुनाना साहस का कार्ये है मुझे स्मरण है कि भरतपुर मे सूरोत्सव के धवसर पर राजस्थान साहित्य भ्रकादमी ने हिंदी साहित्य समिति भरतपुर थे सहयोग से कविसम्मेलन आयो- जित किया गया था झौर ग्रम्भीर अत्तुकात क्विताओो को सुनाने पर जब हल्ला हुआ तो तस्काल बविसम्मेलन समाप्त चर दिया गया और बुछ समय बाद पुन लघु वविसम्मेलन हुप्ना जिससे थ्रोताझो न पम्भीर व क्ाए बडे ध्यान से सुदी न््द्ध




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