रास्ता इधर है | Rasta Idhar Hai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक उमड़ता रंछाब हममे ही डूबा है वह लितिज जहा से उचित होता है सबका आावाश फेंकता ऊपाए ऋतुए , व, सवत्सर एछछालता व्यय है प्रतीसा उन अझबा के ठापो वी जो दा गहरे लंबे सनाटो के बीच हम छोड जात हैं एबा उख़ड़े पुल के विध्वस सा ब्यय हे प्रतीला उन सूर्यों की जिनका प्रवाश हमें सौंप गया अपना अधियारा भौर अधापन 1 अब जब कभी भी भोर होगी होगी, इस अपनी ही आग से चुप्पी वा विशाल नीला घटा जब भी घनघनाएगा अपने ही कठ से । नहिले वह तिलस्म द्वार तिल भर भी न हिले जो मिलने नही देता है एक उमड़ता सैलाब दूसरे सैलाब से शक द्वीप दूसरे द्वीप से श्र ८ मोहन क्षीवास्तव हम सबके बीच एक छ्लिडको भोर है जहा तमाम सडढकें, रेल वी पटरिया पानी और हवाओ के रास्त सव एवं दूसरे से मिलते हैं । बिडिया ख्ीच रही हैं राह इस वन से-- उस वन के भौन मे' दीच शाम इस तट की सुबह उस तट ले जा रही है भटकते रीत॑ मेघ-खड जोड रहे हैं सववा भाकाश । समुद्र के नीचे भी प्रवाहित हैं घाराए एक क्षण और दूसर क्षण के बीचः बुछ भी न घटने पर घटित होता है भविष्य ओर प्रतिव्वनित हाती है अनगिन भुमनाम य्रात्राए और बअतोत मे जड फेंवत्ता इतिहास दूठ हा जाता है । व्यथ है उन श्रटल ध्र[वताराआं की खोज जहा से फ्के गये दिशाओं के बे लहू लुहान कर जाते हैं उभरते उन क्षितिजों को जो हममे डूबे हैं । (जनयुग)




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