श्री माधव निदान | Shri Madhav Nidhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
326
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साधवैनिदान स० | हे
यथादुष्टेनदेषिएंयथांचानुविसर्प्पता ॥ निंटर्ततिरामेय
स्थासों संपाधतिजीतिरोंगेतिः (१० संस्याविकल्पेप्रीधों
नये 'बंलकालाबविशेपतः ॥ सॉमिघत्तेयेथान्रेव वक्ष्यतेप्टी
ज्वराइति ११' दोषाएणसिमवेंतोनां विर्केल्पोंशोंदेकिल्प
ना ॥ रवातंत्यापारतेज्यॉस्यां- व्याघेःप्रोधान्यमादिशेत्
१२ हेत्वादिकात्स्न्यौवर्यवेवेलाबिंलविशषएंमे् ॥ नंक्ते
“दिनसुमुक्तांशेव्याधिकालोयथामलम १३ इतिभरेक्तोनि
दानांर्थस्सव्यासेनोपदेक्ष्यते ॥ स्वेषमेंवरोगाणां, निदा
विहार इन तीनोंके दुःखारक उपयोगकों अनुपशय कहतेहें उसी
का व्याध्यसॉत्त्य भी नाम हे ६ जो वातादि दोषों की दुष्टतता
से अपने स्थानको छोड़कर इधर उधर नीचे ऊँचे फेलती चली
जाती है ओर रोगको उत्पन्न करती है उसका सम्प्राप्तिनामं है
उसीको जांति व आगतिभी कहतेहें १० सल्या,विफरप,प्राधान्य,
बल व काल ये सब सम्प्राप्तिके मेदहें सेव्या जेसे इसीयन्धरमें <
प्रकार के ज्वेर कहे हैं इंसकफो सरूया विशेष सम्प्राप्ति कहतेहँ ११
बात पिंत्त कफोंकें दोप जेब एकेही संगहों चाहे समान झंशों से
चाहे न्यूंनांबिक भैशों से त्तो डसे विंकस्प सम्पाप्ति कहते हें व'
जहां व्याथे अपने भधीन दो उसे प्राधान्य संम्प्राप्ति कद्दते हें
जहाँ रागे अपनंअंधीन न हो उंसे भप्राधान्यं सम्प्रापे कदत्तेद ९२
हेतु आदि जब संम्पूण गगोंसे विद्यमानहों तो रोगंकों बलवान
जानना चाहिये व जो सब पअँंगोसे युक्त नहों थोड़ेही हा तो रोग
की निव्धल जोननों चाहिये रात्रि, दिन, ऋतु, आहार इन के
अशोसे रोगकी कातत समंभना चाहिये इसीको कालरूप सम्प्रा-
पित्त कहते हें राजि दिनके तीन २ भागकरके. कफ पित्त बात का
काल जानना चाहिये ऐसेही बसन्त ऋतु कफरफ़ा समय शरद
प्रित्तका चंपी चीतें का काल जोननां चाहिये १३ निदानका भर्थ
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