पुराण - तत्त्व - प्रकाश भाग - 2 | Puran - Tattv - Prakash Bhag - 2

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Puran - Tattv - Prakash Bhag - 2  by वंशीधरजी पाठक - Vanshidharji Pathak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सध हच्एए का ४2 फेक ्‌ $ ससपेणशा[ | के क्र फट कल कफ सफर प्रिय पाठवर्द्धिन्द ! कमा ह लेरे परमउबड्ण स्व॑ंगवारी-- फिता श्रीग्लालालीकाशमसज * खत्यं-प्रिय अआापण करने की बड़ी खज्चरि थी. इस करग्ण उनका झेम॑ माण्स सहापुदधा के साथ रहता शआा।मत अपने वविता छा पुरऊलाता ५तरलछ € पाल पसखा शरन का सण्डार नहा जिसमे प्राठशात्ट1).. धमंमा सता, छापा ल्‍ैयादिं बनछ्याकर संसार में उनके दात.स्मरणा छोड़ सक॑ | हाँ मैंने बछे परिभ्रम के साथ इस अग्य को तथ्यांर किया ,है; जिस में-सत्य-प्रिय-कथन है जिस देश के उपकार- होने की स। सेममाचनोा है उसी को आज पैं--- अपने लांननीय ऐितों के जात, पर लमर्पण करता: हूं हूं- शुफ्ति सान्‌ प्रसो.) | कआ 5 आप दयामणडार 8३ । आंप फी कूपा से यदद पुस्तक छोछ हि“ ++ सकिरू ले मेरे पिता का चाग घछ७िश्स्थायी रहे 1 3४ झमस ।| केलश्यक सचना 1 इस घुस्लक का उदू 'अजुचाद उद्द जानने वालों के हिंतार्थ शीघ्र छप क अन्‍्यार ही जायमा अतणनचर कोई भद्दाशय इस पुस्तक-और इसके किसी परि> क्लेट की उदू' अज्शुबाद ऋरमे का कष्ट चडडायें। 1 -. कापका झुभखित बे 28 बविव्सनछांल स्थान आव्यक्षन्दिर है पक का सिंछहर ये० पी० - झिला शाइजहाछर्‌_ -




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